
विश्व में प्रताड़ित हिन्दुओं को भारत की नागरिकता मिले-परमाराध्य शङ्कराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती
सं. २०८१ माघ कृष्ण एकादशी तदनुसार दिनाङ्क २५ जनवरी २०२५ ई
पृथिव्यां भारतं श्रेष्ठं जम्बूद्वीपे महामुने। यतो हि कर्मभूरेषा ह्यतोन्या भोगभूमयः।।
अत्र जन्म सहस्राणां सहस्रैरपि सत्तम। कदाचिल्लभते जन्तुर्मानुष्यं पुण्यसञ्चयात्।।
ब्रह्मपुराण, विष्णुपुराण, शिवपुराण आदि का उद्घोष।
सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी में जम्बूद्वीप और जम्बूद्वीप में भी भारतवर्ष-भारतखण्ड सर्वश्रेष्ठ है। क्योंकि धर्मदृष्टि से यही कर्म भूमि अर्थात धार्मिक दृष्टि से उपजाऊ भूमि है। बाकी भूमियाँ तो भोग भूमियाँ हैं।
जिसे यहाँ जन्म मिला है वह भाग्यशाली है और उसके हजारों पूर्व जन्मों के पुण्यों के फलस्वरूप मिला है। इसलिए कोई भी हिन्दू इस भारत भूमि से अपना नाता नहीं तोड़ना चाहता। परन्तु भारत का कानून ऐसा है जिसमें किसी और देश की नागरिकता लेनी पड़े तो उसे भारत की नागरिकता छोड़नी पड़ती है, जो कि पीड़ादायक है।
उक्त बातें परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती १००८ ने आज हिन्दू नागरिकता विषय पर व्यक्त करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि यह भी तथ्य है कि पूरे विश्व में रहकर अपने योगदानों से पूरे विश्व के कोने-कोने को सींचने वाला हिन्दू अगर किसी समय किसी परेशानी में पड़ता है तो उसके सामने प्रश्न है कि वह कहाँ जाए? ईसाई परेशान होगा तो उसके पचीसों देश हैं, चला जाएगा। मुसलमान परेशान हुआ तो उसके पचासों देश हैं, वहाँ चला जाएगा। पर हिन्दू? आज बांग्लादेश में केवल इसलिए प्रताड़ित हो रहा है कि वह “हिन्दू” धर्म को मानता है और उसे छोड़ना नहीं चाहता। बांग्लादेशी मुसलमानों से सताए जाने पर अपने प्राणों को बचाने के लिए जब वह अपना घर-बार छोड़कर भारत में आना चाहता है तो भारत की सीमा पर सेना-पुलिस उसे उसी ओर वापस कर देती है, जहाँ उसे प्राणभय सता रहा है।
आगे कहा कि इन्हीं परिस्थितियों के सन्दर्भ में परमधर्मसंसद् १००८ भारत की सरकार से मांग करती है कि भारत को अपने संविधान में कड़े सुरक्षा उपायों के साथ संशोधन करना चाहिए और एक नागरिकता कानून पारित करना चाहिए, जिससे विश्वव्यापी प्रताड़ित हिन्दुओं को भारत में प्रवास करने का अधिकार मिले और भारत आने के एक वर्ष के भीतर उन्हें नागरिकता प्रदान कर दी जाए।
आज विषय विशेषज्ञ स्थापना मनोरंजन पांडेय जी ने किया।
चर्चा में विशिष्ट अतिथि के रूप में ब्रह्मचारी सहजानन्द जी, ब्रह्मचारी मुकुन्दनन्द जी उपस्थित रहे। इसी क्रम में साध्वी भक्तिगिरी माता जी,रुद्र प्रताप शुक्ला जी,आचार्य विजय प्रकाश मानव जी,राजा सक्षम सिंह जी, स्वामी दविन्द्र सूर्यवंशी जी, संजय जैन जी, सर्वभूतहृदयानंद जी, गुरु चरण दास जी आदि धर्मांसदो ने अपने विचार प्रस्तुत किए।
प्रकर धर्माधीश के रूप में श्री देवेन्द्र पाण्डेय जी ने संसद् का संचालन किया। सदन का शुभारम्भ जायोद्घोष से हुआ। अन्त में परमाराध्य ने धर्मादेश जारी किया जिसे सभी ने हर-हर महादेव का उदघोष कर पारित किया।