नई दिल्ली, 11 सितम्बर: सरकारी अस्पतालों की चिकित्सा व्यवस्था में खामी के चलते मंगलवार को फिर एक मौत हो गई। इस बार सिस्टम का शिकार एक दुधमुंही बच्ची हुई है जिसकी उम्र महज छह दिन थी।
दरअसल, करीब छह दिन पहले दिल्ली के बाबू जगजीवन राम स्मारक अस्पताल (बीजेआरएमएच) में एक महिला ने शिशु को जन्म दिया था। यह नवजात महिला शिशु जन्म से ही गंभीर रूप से बीमार थी। उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। लिहाजा, उसे कृत्रिम सांस प्रदान करने के लिए वेंटिलेटर की जरुरत थी। मगर, नवजात को वेंटिलेटर की सुविधा नहीं मिल सकी और उसने मंगलवार शाम को दम तोड़ दिया।
इस संबंध में नवजात के पिता धीरज ने बताया कि वह करीब छह दिन पहले अपनी गर्भवती पत्नी का प्रसव कराने बीजेआरएमएच आए थे। इस दौरान उनकी पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया। मगर वह गंभीर रूप से बीमार थी। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची को वेंटिलेटर की जरूरत है और हमारे अस्पताल में वेंटिलेटर खाली नहीं है। इसलिए उसे इलाज के लिए किसी और अस्पताल ले जाना पड़ेगा। आप बच्ची के लिए वेंटिलेटर की व्यवस्था कीजिए।
धीरज ने बताया कि तमाम कोशिशों के बाद किसी भी अस्पताल में मुझे अपनी बच्ची के लिए वेंटिलेटर की सुविधा नहीं मिल पाई और मेरी बच्ची की मौत हो गई। उधर, अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ दिग्बिजॉय दत्ता ने बताया कि नवजात बच्ची को बुखार था और वह दूध भी नहीं पी रही थी। वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर थी और उसे एंटीबायोटिक्स दिए जा रहे थे। बच्ची की गंभीर स्वास्थ्य स्थिति के मद्देनजर उसे वेंटिलेटर की जरूरत थी।
डॉ दिग्बिजॉय दत्ता ने बताया कि हमारे अस्पताल के नवजात गहन देखभाल इकाई (एनआईसीयू) में केवल एक बेड पर ही वेंटिलेटर की सुविधा है जिस पर एक अन्य शिशु भर्ती था। हमने वेंटिलेटर की उपलब्धता के बाबत बाबा साहब अंबेडकर अस्पताल, चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय और लोकनायक अस्पताल से संपर्क किया। मगर, वहां एनआईसीयू में भी बेड उपलब्ध नहीं था। इसी वजह से डॉक्टर शिशु को रेफर नहीं कर पा रहे थे और शिशु का इलाज स्वयं कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले शिशुओं के मद्देनजर एनआईसीयू में औसतन चार वेंटिलेटर बेड और ट्रेंड कर्मियों की जरूरत है। ताकि आपातकालीन परिस्थितियों के दौरान नवजात शिशुओं के जीवन की रक्षा हो सके। इस संबंध में अस्पताल प्रशासन स्वास्थ्य विभाग के संपर्क में है। गौरतलब है कि दिल्ली सरकार द्वारा संचालित अस्पतालों की चिकित्सा सेवाओं में सुधार के लिए गठित डॉ एसके सरीन समिति की सिफारिशों का क्रियान्वयन नहीं हो पाना भी समस्या का बड़ा कारण बना हुआ है।