osteoporosis prevention: प्रोबायोटिक्स से ऑस्टियोपोरोसिस पर लग सकता है ब्रेक, मेनोपॉज के बाद हड्डियों की सुरक्षा में आंत की अहम भूमिका

osteoporosis prevention: प्रोबायोटिक्स से ऑस्टियोपोरोसिस पर लग सकता है ब्रेक, मेनोपॉज के बाद हड्डियों की सुरक्षा में आंत की अहम भूमिका
नई दिल्ली, 17 दिसंबर। ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे को कम करने और हड्डियों को मजबूत बनाए रखने में प्रोबायोटिक्स अहम भूमिका निभा सकते हैं। हालिया रिसर्च में सामने आया है कि आंत में मौजूद इम्यून सेल्स का संतुलन हड्डियों के स्वास्थ्य से सीधे जुड़ा है, खासकर मेनोपॉज के बाद महिलाओं में। एम्स दिल्ली के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. रूपेश कुमार श्रीवास्तव के नेतृत्व में की गई स्टडी में यह स्पष्ट हुआ है कि एक स्वस्थ आंत ऑस्टियोपोरोसिस के विकास को धीमा करने में मददगार हो सकती है।
रिसर्च के अनुसार आंत में पाए जाने वाले रेगुलेटरी टी सेल्स यानी ट्रेग्स हड्डियों को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मेनोपॉज के दौरान जब महिलाओं में एस्ट्रोजन का स्तर घटता है, तो आंत की परत कमजोर होने लगती है और अच्छे बैक्टीरिया की संख्या कम हो जाती है। इसके कारण शरीर में सूजन बढ़ती है, जो हड्डियों के तेजी से कमजोर होने और फ्रैक्चर के खतरे को बढ़ा देती है। यही वजह है कि कई महिलाओं में मेनोपॉज के तुरंत बाद हड्डियों के नुकसान की रफ्तार अचानक बढ़ जाती है।
स्टडी में यह भी सामने आया कि एस्ट्रोजन की कमी के दौरान ट्रेग्स का एक सुरक्षात्मक समूह, जिसे आरओआरवाई टी-पॉजिटिव ट्रेग्स कहा जाता है, हानिकारक टीएच 17 सेल्स में बदल सकता है। ये टीएच 17 सेल्स सूजन को बढ़ावा देते हैं और हड्डियों के टूटने की प्रक्रिया को तेज कर देते हैं। यह इम्यून बदलाव ऑस्टियोपोरोसिस के विकास की एक बड़ी वजह माना जा रहा है।
हालांकि रिसर्च ने इसका एक सकारात्मक समाधान भी दिखाया है। अध्ययन के दौरान जब चूहों को लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस नामक फायदेमंद प्रोबायोटिक दिया गया, तो उनकी हड्डियों की स्थिति में स्पष्ट सुधार देखा गया। इस प्रोबायोटिक ने आंत में ब्यूटिरेट जैसे लाभकारी मेटाबोलाइट्स का स्तर बढ़ाया, जिससे इम्यून संतुलन बहाल हुआ और सूजन में कमी आई। इसके साथ ही ट्रेग्स का हानिकारक टीएच 17 सेल्स में बदलना भी रुक गया, जिससे हड्डियां अधिक मजबूत बनी रहीं।
डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस जैसे प्रोबायोटिक्स आमतौर पर सुरक्षित होते हैं और इन्हें रोजमर्रा की जिंदगी में आसानी से शामिल किया जा सकता है। इन्हें सप्लीमेंट्स के रूप में लेने के साथ-साथ दही, योगर्ट और अन्य फर्मेंटेड फूड्स के जरिए भी शरीर को दिया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पेट फूलना या अपच जैसी समस्याएं आंत में असंतुलन का संकेत हो सकती हैं, लेकिन वास्तविक इम्यून असंतुलन की पुष्टि केवल लैब टेस्ट के जरिए ही संभव है।
रिसर्च में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि केवल प्रोबायोटिक्स ही नहीं, बल्कि आंत के लिए फायदेमंद डाइट भी हड्डियों के स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका निभाती है। फाइबर से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियां और साबुत अनाज, फर्मेंटेड फूड्स और हेल्दी फैट्स आंत में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ावा देते हैं। ये बैक्टीरिया ऐसे मेटाबोलाइट्स बनाते हैं जो सूजन को कम करते हैं और हड्डियों को मजबूती प्रदान करते हैं।
एम्स की रिसर्च टीम अब इस दिशा में भी काम कर रही है कि क्या गट माइक्रोबायोम टेस्टिंग के जरिए उन महिलाओं की पहचान की जा सकती है, जिन्हें ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा ज्यादा है। इसका उद्देश्य मेनोपॉज के बाद महिलाओं के आंत के बैक्टीरिया के पैटर्न को समझना है, ताकि बीमारी का शुरुआती स्तर पर पता लगाकर बेहतर इलाज और रोकथाम की रणनीति बनाई जा सके। कुल मिलाकर यह अध्ययन बताता है कि मेनोपॉज के बाद हड्डियों की सुरक्षा के लिए स्वस्थ आंत बेहद जरूरी है और इस पूरी प्रक्रिया में प्रोबायोटिक्स एक प्रभावी और प्राकृतिक सहायक साबित हो सकते हैं।
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