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Nithari Case Verdict: शीर्ष अदालत ने असली अपराधी न मिलने पर जताया खेद, सुरेंद्र कोली बरी

निठारी हत्याकांड में सुरेंद्र कोली को बरी करते हुए शीर्ष अदालत ने असली अपराधी की पहचान न होने पर खेद जताया। न्यायालय ने निष्पक्ष प्रक्रिया और संविधान के अनुच्छेद 21 व 14 पर जोर दिया।

Nithari Case Verdict: शीर्ष अदालत ने असली अपराधी न मिलने पर जताया खेद, सुरेंद्र कोली बरी


शीर्ष अदालत ने जताया खेद

निठारी हत्याकांड में सुरेंद्र कोली को बरी करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वास्तविक अपराधी की पहचान न होना अत्यंत खेदजनक है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आपराधिक कानून अनुमान या पूर्वधारणा के आधार पर दोषसिद्धि की अनुमति नहीं देता।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि अपराध जघन्य हैं और पीड़ित परिवारों की पीड़ा अथाह है।

मामला और जांच की खामियां

निठारी हत्याकांड का खुलासा 29 दिसंबर 2006 को नोएडा के निठारी में हुआ, जब मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल मिले। सुरेंद्र कोली उस समय पंढेर के घर पर घरेलू नौकर था।

न्यायालय ने कहा कि घटनास्थल को सुरक्षित नहीं किया गया, रिमांड दस्तावेज़ में विरोधाभासी विवरण थे और कोली को लंबी पुलिस हिरासत में रखा गया। साथ ही, चिकित्सा जांच समय पर नहीं कराई गई।

न्यायालय की टिप्पणी और कानूनी आधार

पीठ ने कहा कि दोषसिद्धि को आधार देने वाला इकबालिया बयान कानूनी रूप से दोषपूर्ण था। साक्ष्यों में अंतराल और फोरेंसिक जांच की कमी के कारण वास्तविक अपराधी की पहचान नहीं हो सकी।

न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 और 14 पर जोर देते हुए कहा कि निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित प्रक्रिया का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। मृत्युदंड की जगह आजीवन कारावास में परिवर्तित सजा के बावजूद दोषसिद्धि के परिणाम गंभीर हैं।

डीएनए और साक्ष्य संबंधी निष्कर्ष

पीठ ने कहा कि डीएनए परीक्षण से केवल अवशेषों की पहचान हुई, लेकिन इससे अपराध का साबित होना संभव नहीं था। चाकू और कुल्हाड़ी के प्रदर्शन के बावजूद खून, ऊतक या बाल के कोई सबूत नहीं मिले।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुलिस और जनता को पहले से ही अवशेषों की जानकारी थी, और कोली के पहुंचने से पहले ही खुदाई शुरू हो चुकी थी।

Nithari Case Verdict से यह स्पष्ट होता है कि आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्ष जांच और कानूनी प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। दोषसिद्धि केवल तब संभव है जब साक्ष्य और फोरेंसिक प्रमाण पूरी तरह वैधानिक और भरोसेमंद हों।

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