
New Delhi : भारत के स्वर्णिम इतिहास में राज दरभंगा का अपना एक अलग स्थान है। देश की पहचान को आकार देने में राज दरभंगा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राज दरभंगा के योगदान को रेखांकित करने के लिए आज राजधानी दिल्ली में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। ‘भारत के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्र निर्माण में राज दरभंगा का योगदान’ शीर्षक नामक संगोष्ठी में देश के प्रख्यात चिंतकों, नीति-निर्माताओं और सांस्कृतिक हस्तियों ने भाग लिया।
राज दरभंगा की महत्वपूर्ण भूमिका
स्वतंत्रता के बाद, जब राज दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने बिहार भूमि सुधार कानून को न्यायालय में चुनौती दी, तो पटना हाईकोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने 1951 में पहला संविधान संशोधन पारित किया, ताकि भूमि सुधार जैसे कानूनों को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण मिल सके।
कार्यक्रम में अतिथियों की उपस्थिति
कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव भी उपस्थित रहे। उन्होंने दरभंगा राजघराने द्वारा सदियों से कला, संस्कृति, आध्यात्म और शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे उल्लेखनीय योगदान पर प्रकाश डाला।
पुस्तक का विमोचन
इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक तेजाकर झा द्वारा रचित पुस्तक “राज दरभंगा: धर्म संरक्षण से लोक कल्याण” का विमोचन भी किया गया। यह पुस्तक राज दरभंगा वंश की राष्ट्र और सांस्कृतिक जीवन में ऐतिहासिक भूमिका को विस्तार से दर्शाती है।
राज दरभंगा की विरासत को आरएसएस का नमन
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दत्तात्रेय होसबोले ने राज दरभंगा के महाराजाओं की दूरदर्शिता की सराहना की, जिन्होंने औपनिवेशिक काल के दौरान मंदिरों के पुनर्निर्माण, उच्च शिक्षा और भारत की शास्त्रीय एवं सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में निरंतर योगदान दिया।