
New Delhi (राकेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार) : अपनी पारिवारिक परंपराओं को निभाते हुए वर्तमान छद्म कथित सविंधान संरक्षक राहुल गांधी ने आज फिर उपराष्ट्रपति के चुनाव में करारी हार, इंडी गठबंधन के सांसदों को चुनाव में एनडीए के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने की खीझ और असीम पीड़ा दिखाते हुए नव निर्वाचित उपराष्ट्रपति के शपथ ग्रहण का ही बहिष्कार कर दिया। यह वही राहुल गांधी हैं जो देशभर में जेब से निकालकर संविधान की रक्षा के लिए संविधान की प्रति लहराते फिरते हैं, देश विदेश की धरती पर कहते फिरते हैं की भारत में संविधान और लोकतंत्र खतरे में है और स्वयं एवं इनके परिवार वह सभी काम सरेआम किए हैं जिससे संविधान और लोकतंत्र दोनों खतरे में दिखते गई।
तो क्या हम कहें की राहुल द्वारा रचित संविधान और लोकतंत्र खतरे में है का पेतरा सिर्फ हताशा और निराशा से ग्रसित होकर जनता को बेवक़ूफ़ बनाकर येन केन प्राक्रेंन सत्ता प्राप्त करने का मार्ग है।
जब मैंने लिखा की संविधान और परंपराओं का उल्लंघन करना गांधी परिवार का ख़ानदानी शुगल है तो इसके कई उदाहरण है लेकिन मैं इस परिवार के कुकृत्यों का एक एक ही उदाहरण आपको देता हूँ।
भारत का संविधान 1950 से लागू हुआ जिसमे बोलने और लिखने की सम्पूर्ण स्वतंत्रता प्रदत्त थी। दो तीन महीने तो इसे चलने दिया गया लेकिन जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देखा यह आज़ादी उनको ही कटघरे में खड़ा कर रही है तब उन्होंने संविधान में ही संशोधन कर इस धारा की स्वतंत्रता सीमित कर दी।
इंदिरा गांधी जब रायबरेली से अपने चुनाव में गई गई धांधली के कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय द्वारा इनका चुनाव निरस्त हो गया और सर्वोच्च न्यायालय से भी कोई राहत नहीं मिली तब उन्होंने संविधान से इतर जाकर संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए देश में आपातकाल थोप दिया और हर विपक्षी पार्टी के हज़ारों नेताओं को देश भर की जेलों में ठूंस दिया । इंदिरा गांधी ने कौन से संविधान की रक्षा की थी ?
राजीव गांधी ने शाह बानो केस में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को ही इंदिरा गांधी की मृत्यु उपरांत मिले सहानुभूति वोट की प्रचुर मात्रा में मिलीं अधिक सीटों के कारण सर्वोच्च न्यायालय के गुजारा भत्ता देने के निर्णय को हींबदल डाला और यह सिर्फ़ तुष्टिकरण के लिए किया गया।
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में सोनिया गांधी सर्वोच्च प्रधानमंत्री बनकर कौन से संविधान का पालन कर रहीं थीं जहाँ सरकार का हर निर्णय सोनिया से ही पास होकर सरकार के पास जाता था।
राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह के द्वारा लाया गया एक बिल प्रेस क्लब में सरेआम फाड़कर कौन से संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की थी।
राहुल का अहंकार देखो पिछले साल 2024 के आम चुनाव के बाद संसद में जब लोकसभा अध्यक्ष ने राहुल को प्रणाम किया तो राहुल ने कहा की झुककर क्यों नहीं किया। यह लोक सभा की कार्यवाही में दर्ज है।
संविधान और लोकतंत्र की रक्षा का दावा करने वाला राहुल 15 अगस्त को लालकिले से ग़ायब, 26 जनवरी को रिपब्लिक डे परेड से यह कहते हुए गायब की मुझे दूसरी पंक्ति में स्थान क्यों दिया गया, क्या यह प्रधानमंत्री है जिसे मंच पर विदेशी मेहमान के साथ बैठना चाहिए था, कितने ही केंद्रीय मंत्री दूसरी और तीसरी पंक्ति में बैठे थे क्या यह उनसे भी ऊपर है , संविधान दिवस के फंक्शन में राष्ट्रपति का अभिवादन ना करना क्या संविधान की रक्षा है, और आज नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति के शपथग्रहण का बहिष्कार कर कौन सी परंपरा का निर्वहन किया या नई परंपरा डाली।
ये छुपकर छुपकर, बिना किसी कोंबायर्न गुप्त विदेशी यात्राओं का क्या मतलब है । इन्हें जेड श्रेणी की सुरक्षा मिलिन्हुई है और सुरक्षा एजेंसियों को छा देकर ये बिना बताए विदेशों में किसे और क्यों मिलने जाते है। वैसे तो अब सुरक्षा एजेंसियों ने कांग्रेस अध्यक्ष को इस निर्लज्ज और उद्दंड व्यवहार की सूचना दे दी है। जरा सोचो की यदि इसे कुछ हो जाए तो कौन जिम्मेवार होगा , देश में कैसा उधम मचेगा, तब इसकी गलती कोई नहीं मानेगा।
देश में कितने भी गंभीर विषय हों राहुल को बिना सूचना के गुप्त विदेश यात्रा करनी होती है। क्या संविधान और लोकतंत्र बचाने वाले की देश के ख़िलाफ़ कोई साज़िश तो नहीं रची जा रही।
ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान की भाषा बोलना, टैरिफ वॉर में अमेरिकी भाषा बोलना, हर वक्त चीन को प्रसन्न करने वाली बात करना। कुछ भी हो भारत विरोधियों का साथ देना। वोट चोरी कंझूठा इल्ज़ाम लगाना इत्यादि इत्यादि। देश को इस बहरूपिये से बचकर रहना होगा।