
New Delhi (मिताली चंदोला, एडिटर, स्पेशल प्रोजेक्ट्स) : दक्षिण एशिया में स्थिरता की उम्मीदों को झटका देते हुए, पाकिस्तान और तालिबान के बीच बहुप्रतीक्षित शांति वार्ता इस्तांबुल में ध्वस्त हो गई है। इस वार्ता को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन अचानक बातचीत टूटने से पूरा क्षेत्र फिर से अनिश्चितता में घिर गया है।
सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का असमंजसपूर्ण और असम्मानजनक रवैया वार्ता के दौरान मध्यस्थों को हैरान कर गया, जिसके बाद बातचीत पूरी तरह से रुक गई।
यह वार्ता सीमापार आतंकी गतिविधियों को खत्म करने और क्षेत्र में स्थिरता लाने के लिए आयोजित की गई थी। लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान की सत्ता व्यवस्था में जारी शक्ति संघर्ष और सेना के दबाव ने इस प्रक्रिया को कमजोर कर दिया। प्रतिनिधिमंडल का कठोर और असहयोगी रुख पाकिस्तानी सिविल और सैन्य नेतृत्व के बीच गहरी दरारों को उजागर करता है।
कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस विफलता से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय साख को बड़ा नुकसान पहुंचा है। जिन देशों ने इस संवाद को संभव बनाने में राजनीतिक और राजनयिक प्रयास किए थे, उनके लिए यह गंभीर झटका साबित हुआ है।
विश्लेषकों का कहना है कि इस असफलता से अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर हिंसा दोबारा भड़क सकती है, जिससे वर्षों की मेहनत और विश्वास खो सकता है।
इस्तांबुल की यह विफलता पाकिस्तान के लिए सिर्फ एक कूटनीतिक हार नहीं, बल्कि यह सबक है कि सैन्य दबाव कभी भी कूटनीतिक समझ का विकल्प नहीं हो सकता।





