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नई दिल्ली: शिशु के संपूर्ण विकास के लिए स्तनपान जरुरी : नीना मल्होत्रा 

नई दिल्ली: -शिशुओं को पोषण देने के साथ रोगों से लड़ने की ताकत देता है मां का दूध

नई दिल्ली, 7 अगस्त : स्तनपान से शिशु को केवल पौष्टिक आहार ही नहीं मिलता। बल्कि रोगों से लड़ने की क्षमता भी मिलती है। यह (मां का दूध) बच्चे के सोचने, तर्क करने और समस्या-समाधान करने की क्षमताओं का विकास करता है। यह विकास बच्चे के जीवन के शुरुआती वर्षों से लेकर किशोरावस्था तक जारी रहता है जिसमें ज्ञान, कौशल और भाषा का विकास शामिल होता है।

यह जानकारी एम्स दिल्ली के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की प्रमुख डॉ. नीना मल्होत्रा ने विश्व स्तनपान सप्ताह के अवसर पर वीरवार को दी। उन्होंने कहा, इस सप्ताह को मनाने का उद्देश्य शिशुओं को कुपोषण से बचाना और उनके मानसिक-शारीरिक विकास को बढ़ावा देना है। स्तनपान शिशुओं को स्वस्थ रखने का सबसे अच्छा तरीका है जो आपात स्थितियों में उनके लिए सुरक्षित और सुलभ भोजन का स्रोत होता है। यह शिशुओं को पोषण देने के साथ रोगों से लड़ने की ताकत देता है, जिससे दस्त और निमोनिया जैसी बीमारियों से बचाव होता है।

डॉ. सोनिया धीमान ने कहा, स्तनपान बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार है जिसमें पानी, वसा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, खनिज और एंटीबॉडी होते हैं। इसमें शिशु के लिए सभी जरूरी पोषक तत्वों का एक संतुलित मिश्रण होता है जो बच्चे की पाचन क्रिया को मजबूत बनाता है। शिशु को उसके जीवन के पहले 6 महीनों तक केवल स्तनपान कराना बेहद जरूरी है। जो कम से कम शिशु के पहले जन्मदिन तक और उसके बाद भी, जब तक दोनों (मां और शिशु) चाहें, जारी रखा जा सकता है। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन सभी शिशुओं के लिए कम से कम 2 साल तक स्तनपान कराने की सलाह देता है।

डॉ. धीमान ने आगे बताया, स्तनपान माताओं में स्तन कैंसर, डिम्बग्रंथि कैंसर, टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग के खतरे को भी कम करता है। यह प्राकृतिक तौर पर परिवार नियोजन करने में भी सहायक होता है। स्तनपान कराने के दौरान माता के गर्भ ठहरने की संभावना बहुत कम रहती है जिसे लेक्टेशन एमेनोरिया कहते हैं। इसके अलावा, मां के दूध में ऐसे कारक भी होते हैं जो शिशु के पाचन, प्रतिरक्षा और तंत्रिका तंत्र के विकास में मदद करते हैं।

शिशु को स्तनपान न कराने के नुकसान
स्तनपान न कराने से शिशु और माँ दोनों को कई नुकसान होते हैं। स्तनपान न कराने से शिशुओं में जहां कान के संक्रमण (ओटिटिस मीडिया), दस्त और श्वसन संक्रमण के खतरे बढ़ जाते हैं। इसके अलावा, मोटापा, टाइप 1 और टाइप 2 मधुमेह, ल्यूकेमिया और अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम का खतरा भी बढ़ जाता है।

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