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नई दिल्ली: सेना ने केमिकल एजेंट डिटेक्शन सिस्टम अलार्म खरीदा

नई दिल्ली: - पर्यावरण में मौजूद हवा के नमूनों को लेकर विषाक्त पदार्थों का पता लगाएगा सिस्टम

नई दिल्ली, 26 फरवरी। सेना ने सीबीआरएन हमलों से बचाव के लिए स्वचालित रासायनिक एजेंट डिटेक्शन और अलार्म (एसीएडीए) सिस्टम लगाने की योजना बनाई है। इसके लिए सेना ने मेसर्स एलएंडटी लिमिटेड के साथ 80.43 करोड़ रुपये की लागत से 223 हैंड हेल्ड डिवाइस खरीदने के लिए करार किया है।

एसीएडीए एक अत्याधुनिक उपकरण है जो पर्यावरण से हवा का नमूना लेकर रासायनिक युद्ध एजेंटों का पता लगाता है। एसीएडीए के कंप्यूटर प्रोग्राम में सभी प्रकार के युद्धक व खतरनाक रसायनों के साथ विषाक्त औद्योगिक रसायनों को शामिल किया जा सकता है। यह आयन मोबिलिटी स्पेक्ट्रोमेट्री के सिद्धांत पर काम करता है और इसमें हानिकारक या विषाक्त पदार्थों का निरंतर पता लगाने और एक साथ निगरानी के लिए दो अत्यधिक संवेदनशील आईएमएस सेल होते हैं।

इसे खतरे का पता लगाने और संकेत देने के लिए डिजाइन किया गया है। इस सिस्टम को विभिन्न सुविधा स्थलों पर तैनात करने के दौरान एक विशिष्ट हवाई जोखिम सीमा तय की जाती है और मॉनिटर को नियंत्रण स्तर के 20 प्रतिशत पर सेट किया जाता है। जब उपकरण आमतौर पर उस स्थान के लिए प्रासंगिक नियंत्रण स्तर का 20 प्रतिशत पार कर जाता है तब अलार्म बज उठता है। जिसकी अवधि करीब 3 से 8 मिनट तक होती है।

यह उपकरण को डीआरडीओ के रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान, ग्वालियर ने डिजाइन और विकसित किया है। इन उपकरणों को देश के महत्वपूर्ण और संवेदनशील केंद्रों में स्थापित किया जाएगा ताकि संभावित रासायनिक हमलों या औद्योगिक दुर्घटना से बचाव हो सके। इनका इस्तेमाल ऑन-साइट डिटेक्शन के लिए और जलधाराओं, तालाबों व अन्य जल स्रोतों के पानी के पीने योग्य क्षमता की जांच के लिए भी किया जाता है।

क्या है सीबीआरएन हथियार ?
अगर सीआरबीएन हथियार की बात करें, तो ये बड़े पैमाने पर तबाही मचाने वाला हथियार है। इसमें रासायनिक, रेडियोधर्मी, जैविक और नाभिकीय तत्वों का प्रयोग किया जाता है। इसके इस्तेमाल से एक ही बार में बड़े पैमाने पर लोगों को निशाना बनाया जा सकता है। यही वजह है कि इसे ‘वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन’ यानी सामूहिक विनाश के हथियारों के तौर पर देखा जाता है।

रासायनिक हथियार के बारे में ..
सीबीआरएन केमिकल हथियारों में मस्टर्ड गैस और नर्व एजेंट शामिल है। मस्टर्ड गैस त्वचा, फेफड़े और आंखों को नुकसान पहुंचाने का काम करता है। वहीं नर्व एजेंट इंसान को बेहोश करने वाला होता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत भी होती है। कई बार इंसान की मौत भी हो जाती है। हालांकि, मल्टीएजेंट मॉनिटरिंग के दौरान प्रत्येक एजेंट के लिए अलग-अलग मॉनिटर की आवश्यकता होती है लेकिन स्वदेशी उपकरण में एक से अधिक रासायनिक एजेंटों का पता लगाया जा सकता है।

कब हुए रासायनिक हमले ?
बीते साल रूस – यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस ने यूक्रेन और सहयोगी देशों पर रासायनिक हमला करने का आरोप लगाया था। वहीं , सीरिया में गृहयुद्ध जैसी स्थिति के दौरान सरकार विरोधी गुट द्वारा अलेप्पो और दमिश्क में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल करने की बात कही गई। जबकि, सीरिया इससे इनकार करता रहा। इसके अलावा, साल 2019 में तेजी से प्रसारित कोरोना महामारी को जैविक हथियार कहा गया। चूंकि इसका वायरस चीन के वुहान शहर से दुनिया भर में फैल रहा था लेकिन अन्य शहर अछूते थे। हालांकि कोरोना वायरस के जैविक हथियार होने का कोई सबूत आज तक दुनिया के सामने नहीं आ सका है।

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