
नई दिल्ली, 15 सितम्बर: देश के वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में पाए जाने वाले स्क्लेरोस्टिन प्रोटीन में से तीन ऐसे पेप्टाइड्स विकसित किए हैं, जो हड्डियों को खोखला बनाने वाले ‘ऑस्टियोपोरोसिस रोग’ और जोड़ों के दर्द के लिए जिम्मेदार ‘ऑस्टियोआर्थराइटिस रोग’ के इलाज में बेहद कारगर साबित होंगे। इनके नाम एससी -1, एससी -2 और एससी -3 हैं।
एम्स दिल्ली के डॉ. रुपेश श्रीवास्तव ने बताया कि हमने सीडीआरआई लखनऊ के डॉ. नायबेद्य चट्टोपाध्याय और आईआईटी खड़गपुर के डॉ. जिमुत के. घोष के साथ मिलकर तीन नए प्रोटीन विकसित किए हैं जो हड्डी रोग से पीड़ित मरीजों के जीवन में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। ये तीनों स्क्लेरोस्टिन प्रोटीन के पेप्टाइड्स हैं। इनमें से एससी -1 और एससी -3 का उपयोग ‘ऑस्टियोपोरोसिस रोग’ और ‘ऑस्टियोआर्थराइटिस रोग’ से पीड़ित एनिमल मॉडल (चूहों) पर किया गया। इस दौरान उन्हें शीयर-थिनिंग हाइड्रोजेल के माध्यम से आठ हफ्ते लगातार (प्रत्येक हफ्ते एक खुराक) दवा और इंजेक्शन की खुराक दी गई। परिणाम शानदार रहे। यानि हड्डी रोगों की प्रगति तेजी से कम हो गई।
डॉ. चट्टोपाध्याय के मुताबिक, हमने न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (एनएमआर) अध्ययनों और आणविक मॉडलिंग की मदद से एससी -1 (18 अमीनो एसिड, स्क्लेरोस्टिन के लूप 2 से लिया) जो स्क्लेरोस्टिन का विरोधी, वंट (डब्ल्यूएनटी) गतिविधि को बढ़ाकर हड्डी निर्माण को प्रोत्साहित करता है। ऑस्टियोपोरोसिस को रोकता है। वहीं, एससी -3 (14 अमीनो एसिड, लूप 3 से लिया ) जो स्क्लेरोस्टिन की नकल करता है, वंट सिग्नलिंग को रोककर ऑस्टियोआर्थराइटिस की प्रगति को रोकता है। हमने ट्रायल के दौरान ऑस्टियोपोरोसिस के इलाज के लिए एससी -1 प्रोटीन और ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज के लिए एससी-3 प्रोटीन की खुराक चूहों को दी और वे तेजी से स्वस्थ होने लगे।

डॉ. चट्टोपाध्याय ने कहा, यह इस बात का प्रमुख उदाहरण है कि अंतःस्रावी विज्ञान, संरचनात्मक जीवविज्ञान, नैनोटेक्नोलॉजी और एम्स की लैब में संपन्न इम्यूनोलॉजी को मिलाकर कैसे प्रथम श्रेणी के उपचार उत्पन्न किए जा सकते हैं। डॉ. घोष ने कहा, भारत की बड़ी बुजुर्ग आबादी मधुमेह और किडनी रोग से संबंधित हड्डी विकारों की बढ़ती घटनाओं के साथ एक चुनौती का सामना कर रही है। अगर हमारे शोध पर आगे काम किया गया तो एससी-1 और एससी-3 भारत को हड्डी और जोड़ों के स्वास्थ्य के लिए पेप्टाइड-आधारित चिकित्सा विज्ञान में सबसे आगे ला सकते हैं। हमारे निष्कर्ष न केवल उपचार प्रतिमानों को बदल सकते हैं, बल्कि अन्य बीमारियों के लिए सुरक्षित, स्मार्ट पेप्टाइड दवाओं के विकास को भी प्रेरित कर सकते हैं।
गौरतलब है कि ऑस्टियोपोरोसिस, जिसमें हड्डियों में खोखलापन आने से टूटने की आशंका बढ़ जाती है, विश्व स्तर पर लगभग 20 करोड़ लोगों को प्रभावित करता है। खासकर रजोनिवृत्ति के बाद की महिलाओं और पुरानी किडनी रोग से पीड़ित व्यक्तियों को। दूसरी ओर, ऑस्टियोआर्थराइटिस, बुजुर्गों में अक्षमता का प्रमुख कारण है, जिसमें कार्टिलेज या उपास्थि का क्षरण और जोड़ों में दर्दनाक अकड़न होती है। वर्तमान उपचार अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते। टेरीपैराटाइड जैसे दवाएं हड्डी निर्माण को बढ़ावा तो देती हैं, लेकिन हड्डी के टूटने को नहीं रोक सकतीं। रोमोसोज़ुमैब, एक ऐसी ही एंटीबॉडी दवा है जो स्क्लेरोस्टिन को रोकती है। मगर हृदय संबंधी जोखिम पैदा करती है और एक वर्ष से अधिक समय तक भी प्रभावी नहीं रहती।
क्या होता है वंट ?
वंट (डब्ल्यूएनटी) सिग्नलिंग हड्डी निर्माण में सहायता करती है और स्क्लेरोस्टिन,ऑस्टियोब्लास्ट (हड्डी बनाने वाली कोशिकाओं) में वंट सिग्नलिंग को रोकता है, जिसके परिणामस्वरूप हड्डी निर्माण दब जाता है। एससी-1 और एससी -3 प्रोटीन की प्रभावशीलता और सुरक्षा का मनुष्यों में परीक्षण किया जाएगा। यदि सफल रहा, तो ये पेप्टाइड्स ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस के इलाज के मामले में पहला डबल सोल्युशन होगा। जो दुनिया भर में लाखों मरीजों को उम्मीद प्रदान करेंगे।
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