
नई दिल्ली, 24 अप्रैल : वर्चुअल रियलिटी और ऑगमेंटेड रियलिटी टूल, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) से प्रभावित बच्चों की समझ में सुधार लाने में सहायक साबित हो रहे हैं। इनके जरिये बच्चों के पूर्वानुमान, संयुक्त ध्यान, गति और थ्रीडी स्पेस की समझ में सुधार लाया जा सकता है। साथ ही बच्चों के सीखने और संप्रेषण की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।
यह बातें एम्स दिल्ली के बाल तंत्रिका विज्ञान प्रभाग की प्रभारी डॉ. शेफाली गुलाटी ने ‘दिमाग की विविधता और स्थिरता’ विषय पर आयोजित सार्वजनिक व्याख्यान कार्यक्रम में वीरवार को कहीं। उन्होंने कहा, विदेशी डॉक्टरों का मानना है कि एएसडी प्रभावित बच्चों का दिमाग या आईक्यू लेवल अन्य बच्चों की अपेक्षा सिर्फ 40% होता है। जबकि पिछले 27 वर्षों के दौरान चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिवीजन में आने वाले बच्चों से हुए संपर्क के आधार पर मेरा अनुभव कहता है कि इनका आईक्यू लेवल 70% से ज्यादा होता है। इनमें से कई बच्चे तो इतने तेज दिमाग के होते हैं कि वे किसी भी संख्या की गणना कंप्यूटर से भी तेज गति से करने में सक्षम होते हैं।
एम्स निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास ने कहा, एएसडी के उपचार, देखभाल और प्रबंधन को लेकर इंटरनेट पर बहुत सारी जानकारी उपलब्ध है लेकिन उसकी सत्यता की पुष्टि नहीं की जा सकती है। ऐसे में एएसडी प्रभावित बच्चों के माता-पिता को न्यूरो विशेषज्ञों से परामर्श लेना चाहिए जो एम्स दिल्ली में निशुल्क रूप से उपलब्ध है। इस अवसर पर उपनिदेशक कर्ण सिंह, बाल चिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ. पंकज हरि, डब्ल्यूएचओ के युतारो सेतोया, यूनिसेफ के डॉ. विवेक वीरेंद्र सिंह और प्रधानमंत्री की आर्थिक सहयोग परिषद की सदस्य डॉ. शमिका रवि मौजूद रहे।
ऑटिज्म प्रभावित बच्चों को मुफ्त शिक्षा
डॉ. शमिका रवि ने कहा कि एएसडी से प्रभावित बच्चों के उपचार, देखभाल, खान -पान और शिक्षा पर काफी खर्च होता है। ऐसे ही परिवारों की मदद के लिए केंद्र सरकार ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 बनाया है जिसके तहत 6 से 18 वर्ष तक आयु के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा का नियम बनाया गया है। दिव्यांगता के प्रकारों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है और सरकारी नौकरियों में आरक्षण 3% से बढ़ाकर 4% कर दिया गया है और लेकिन अधिकांश लोग इस कानून से अनभिज्ञ है जिसके चलते वह लाभ नहीं उठा पाते हैं। ऐसे में वृहद् जागरूकता अभियान चलाए जाने की जरुरत है ताकि जरूरतमंद लोगों को कानून का लाभ मिल सके।
INS सूरत मिसाइल हमला होने की स्थिति में खुद ही दुश्मन की मिसाइलों की पहचान करने और उन्हें हवा या पानी में ही मार गिराने में सक्षम है। इससे भारत की समुद्री सीमा और मजबूत होती है। भारत की सीमा का अधिकतर हिस्सा समुद्र से ही लगता है। ऐसे में यह उपलब्धि और महत्वपूर्ण हो जाती है।INS सूरत मिसाइल हमला होने की स्थिति में खुद ही दुश्मन की मिसाइलों की पहचान करने और उन्हें हवा या पानी में ही मार गिराने में सक्षम है। इससे भारत की समुद्री सीमा और मजबूत होती है। भारत की सीमा का अधिकतर हिस्सा समुद्र से ही लगता है। ऐसे में यह उपलब्धि और महत्वपूर्ण हो जाती है।