
नई दिल्ली, 26 सितम्बर : अगर आपके घर में छोटे बच्चे हैं तो दवाओं और रसायनों को खुला ना छोड़े। उन्हें बच्चों की पहुंच से दूर रखें या अलमारियों में बंद रखें। चूंकि खेल-खेल में ऐसे हानिकारक पदार्थों का सेवन जहां बच्चे की सेहत से खिलवाड़ कर सकता है। वहीं उनके लिए जहर भी साबित हो सकता है।
एम्स दिल्ली के फार्माकोलॉजी विभाग की वरिष्ठ वैज्ञानिक और राष्ट्रीय जहर सूचना केंद्र की नोडल अधिकारी डॉ. स्वाति शर्मा ने बताया कि वर्ष 2024 में जहर खाने से बचाव के लिए कुल 6,197 कॉल आईं थी जिनमें से 3,618 कॉल आकस्मिक रूप से या अनजाने में जहर खाने की थीं। इनमें भी 2600 कॉल छह साल से कम उम्र के मासूम बच्चों की थी जो मुख्यतः कीटनाशकों, जैसे मच्छर भगाने वाले स्प्रे ,पूजा में इस्तेमाल होने वाले कपूर के टुकड़े और अन्य कीटनाशकों से संबंधित थीं, जबकि 1,719 कॉल ऐसी थी जिनमें पीड़ित ने जानबूझकर जहर खाया था।
यानि आकस्मिक जहर खाने वाले बच्चों की संख्या 70% से ज्यादा रही। वहीं दिल्ली एनसीआर की बात करें तो यहां देशभर से प्राप्त कुल कॉलों में से 806 कॉल आकस्मिक जहर खाने से संबंधित रहीं। उन्होंने बताया कि केंद्र की हेल्पलाइन पर 2021 में 5,657 कॉल आए थे , जो 2022 में बढ़कर 7,035 हो गए। वहीं 2023 में घटकर 6,047 हो गए थे। डॉक्टर ने बताया कि 2022 में असामान्य वृद्धि मुख्य रूप से कोविड-19 के दौरान और उसके बाद हैंड सैनिटाइजर के जहर के कारण हुई थी।
फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख और केंद्र के प्रोफेसर डी.एस. आर्य ने कहा कि रोकथाम का मुख्य विषय ‘सावधान रहें और जहर से सुरक्षित रहें’ है, जो न केवल घर पर, बल्कि कार्यस्थलों, खेतों और औद्योगिक क्षेत्रों में भी लागू होता है। उन्होंने कहा, जहर घरेलू उत्पादों, दवाओं, नशीले पदार्थों, कृषि रसायनों, पादप उत्पादों, जानवरों के काटने और डंक मारने, और औद्योगिक कारकों से हो सकता है। कुछ आसान कदम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं- दवाओं और रसायनों को बंद अलमारियों में रखें, उन्हें बच्चों की पहुंच से दूर रखें और केवल सुरक्षित भोजन ही खाएं।
डॉ. शर्मा के मुताबिक मौसम के साथ कॉल का स्वरूप अक्सर बदलता रहता है। दिवाली के दौरान, कई मामले पेंट थिनर से जुड़े होते हैं, अन्य त्योहारों और पूजा-पाठ के दौरान, बच्चों द्वारा कपूर निगलना आम बात है। परीक्षा के समय, खुद को नुकसान पहुंचाने से संबंधित कॉल बढ़ जाती हैं। पहले, खुद को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं 14-15 साल के बच्चों में देखी जाती थीं, लेकिन अब यह 8-9 साल के बच्चों में भी देखी जा रही है। जिसके पीछे पढ़ाई के तनाव सहित विभिन्न अन्य दबाव हो सकते हैं।
स्वाति शर्मा ने बताया, फार्माकोलॉजी विभाग में स्थित यह केंद्र, देश भर में डॉक्टरों और परिवारों को विषाक्तता संबंधी आपात स्थितियों के प्रबंधन में मार्गदर्शन देने के लिए एक 24×7 टोल-फ्री हेल्पलाइन संचालित करता है। अगर कोई व्यक्ति जहर खा लेता है तो उसे डॉक्टर या वैद्य आदि के पास ले जाने से पहले उल्टी ना कराएं, यह गलत है। खासकर जब जहर एसिड हो, तो यह फेफड़ों में जाकर चोट को और बदतर बना सकता है। उन्होंने कहा, ज्यादातर कॉल तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से आए थे जो शायद एम्स की हेल्पलाइन सेवा के बारे में बढ़ती जागरूकता के कारण संभव हुआ है।
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