GTB Hospital: ‘स्ट्रोक’ मरीजों के लिए जीटीबी अस्पताल में बनेगा ‘विशेष कॉरिडोर’

GTB Hospital: ‘स्ट्रोक’ मरीजों के लिए जीटीबी अस्पताल में बनेगा ‘विशेष कॉरिडोर’
नई दिल्ली, गुरु तेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल, दिल्ली अब स्ट्रोक यानी लकवा से पीड़ित मरीजों के लिए देश की राजधानी में एक बड़ा कदम उठाने जा रहा है। अस्पताल प्रशासन जल्द ही एक “स्ट्रोक कॉरिडोर” तैयार करेगा, जिसका उद्देश्य “गोल्डन आवर” यानी स्ट्रोक आने के बाद पहले 3–4 घंटे के भीतर मरीज को इलाज की तत्काल सुविधा प्रदान करना है। योजना के अनुसार, अस्पताल पहुंचने वाले मरीज को अगले 15 मिनट में उपचार उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।
समय पर इलाज से बचाई जा सकती है जिंदगी
जीटीबी अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. गुरबचन सिंह ने बताया कि स्ट्रोक या लकवा मस्तिष्क की ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति को जीवनभर के लिए विकलांग बना सकती है। लेकिन यदि मरीज को समय रहते उपचार मिल जाए तो वह पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है। उन्होंने कहा कि “अगर स्ट्रोक के तीन से चार घंटे के भीतर मरीज को अस्पताल पहुंचा दिया जाए और सीटी स्कैन जैसी सुविधाएं मिल जाएं तो मरीज को लकवे से स्थायी विकलांगता से बचाया जा सकता है।”
युवाओं में भी बढ़ रहा है स्ट्रोक का खतरा
डॉ. सिंह के मुताबिक, पहले स्ट्रोक को केवल बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब यह युवाओं में भी तेजी से फैल रहा है। काम का दबाव, असंतुलित खानपान, नींद की कमी, लगातार स्क्रीन पर समय बिताना और फास्ट फूड की आदतें युवाओं में उच्च रक्तचाप और तनाव को बढ़ा रही हैं, जो स्ट्रोक के बड़े कारणों में से हैं।
स्ट्रोक के प्रमुख कारण
स्ट्रोक के दो मुख्य प्रकार हैं —
थ्रोम्बोटिक स्ट्रोक: जब मस्तिष्क की धमनियों में ही खून का थक्का बन जाता है।
एम्बोलिक स्ट्रोक: जब शरीर के किसी अन्य हिस्से में बना थक्का रक्त प्रवाह के जरिए मस्तिष्क में पहुंचकर रक्त आपूर्ति रोक देता है।
लगभग 80% मामले इस्केमिक और 20% मामले हेमरेजिक स्ट्रोक के होते हैं, जिनका इलाज थ्रांबोलिटिक दवाओं और मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी से संभव है।
सर्दियों में बढ़ जाता है खतरा
ठंड के मौसम में रक्त वाहिकाएं सिकुड़ने और रक्त गाढ़ा होने से स्ट्रोक के मामले बढ़ जाते हैं। शारीरिक निष्क्रियता, मौसमी संक्रमण और निर्जलीकरण भी जोखिम बढ़ाते हैं। इसलिए विशेषज्ञ सर्दियों में विशेष सतर्कता बरतने की सलाह देते हैं।
डॉ. सिंह ने बताया कि स्ट्रोक कॉरिडोर का मकसद अस्पताल में स्ट्रोक मरीजों के लिए एक विशेष उपचार क्षेत्र तैयार करना है। इसमें 24 घंटे न्यूरो सर्जनों की टीम, सीटी स्कैन, ऑपरेशन थिएटर और आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी। इस गलियारे में मरीजों के लिए फिजियोथेरेपी, मानसिक रूप से सक्रिय रखने वाली गतिविधियां जैसे पहेलियां और हल्के मनोरंजक कार्य भी शामिल किए जाएंगे ताकि वे जल्दी स्वस्थ हो सकें।
कौन लोग हैं जोखिम में?
महाजन इमेजिंग एंड लैब्स के संस्थापक डॉ. हर्ष महाजन ने बताया कि जिन लोगों को हाई बीपी, डायबिटीज, मोटापा, या धूम्रपान की समस्या है, उन्हें स्ट्रोक का खतरा ज्यादा रहता है। उन्होंने कहा, “जिन मरीजों को ब्लड प्रेशर की नियमित दवा लेनी पड़ती है, उन्हें रोजाना बीपी की जांच करनी चाहिए। खासकर बुजुर्गों को यह आदत बना लेनी चाहिए।”
स्ट्रोक के लक्षणों को ना करें नजरअंदाज
डॉ. महाजन के अनुसार, अगर आपकी जबान लड़खड़ाने लगे, हाथ-पैर सुन्न हों, चलने में संतुलन न बने या चेहरे का एक हिस्सा टेढ़ा दिखे, तो ये स्ट्रोक के शुरुआती संकेत हैं। ऐसे में तुरंत नजदीकी अस्पताल जाएं, जहां न्यूरो सर्जरी यूनिट मौजूद हो। उन्होंने कहा, “हर मिनट कीमती है, क्योंकि हर मिनट में लाखों ब्रेन सेल्स मरते हैं।”
स्ट्रोक आने पर मरीज को एंबुलेंस या टैक्सी से ही अस्पताल ले जाएं। उन्हें पैदल चलने या गाड़ी तक खुद जाने की कोशिश न करने दें, क्योंकि इससे उनकी हालत और बिगड़ सकती है। मरीज को जितनी जल्दी संभव हो, सुरक्षित अस्पताल पहुंचाना ही प्राथमिकता होनी चाहिए।
‘ग्रीन कॉरिडोर’ और ‘स्ट्रोक कॉरिडोर’ में अंतर
‘ग्रीन कॉरिडोर’ का उपयोग अंग प्रत्यारोपण जैसी आपात स्थितियों में किया जाता है, जब किसी अंग को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक तेजी से पहुंचाना होता है।
वहीं, ‘स्ट्रोक कॉरिडोर’ का उद्देश्य अस्पताल के भीतर स्ट्रोक मरीज को तुरंत और समन्वित चिकित्सा देना है, जिससे उसकी जान और गतिशीलता दोनों बचाई जा सकें। जीटीबी अस्पताल की यह पहल दिल्ली और आसपास के मरीजों के लिए राहत की बड़ी उम्मीद है। “स्ट्रोक कॉरिडोर” न केवल आपातकालीन उपचार को गति देगा, बल्कि लकवा पीड़ितों को विकलांगता से बचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।




