
दिल्ली/एनसीआर, 30 जून : फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के डॉक्टरों ने एक दुर्लभ किस्म के मामले में, 2-वर्षीय केन्याई शिशु का बोन मैरो ट्रांसप्लांट करके उसे नया जीवन प्रदान किया है। डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त यह शिशु जटिल हेल्थ कंडीशंस – ब्लड एवं बोन मैरो के कैंसर से पीड़ित था। इस तरह के अत्यंत दुर्लभ मामलों में दुनियाभर में केवल 30% सफलता ही हासिल होती है। अस्पताल की पिडियाट्रिक हेमेटो-ओंकोलॉजी टीम ने रेजिस्टेंट ब्लड कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद इस शिशु का कई महीनों तक इलाज किया। डॉ विकास दुआ, प्रिंसीपल डायरेक्टर एंड हेड पिडियाट्रिक हेमेटोलॉजी, हेमेटो ओंकोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम और उनकी टीम ने इसे सफलतापूर्वक पूरा किया।
पिछले साल नवंबर में केन्या में इस शिशु को ब्लड कैंसर डायग्नॉज़ किया गया था। दो बार कीमोथेरेपी के बावजूद, मरीज में कोई सुधार के लक्षण नहीं दिखायी दिए, जो रिफ्रेक्ट्री एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल) का लक्षण था, यह ऐसी कंडीशन है जिसके लिए स्पेश्यलाइज़्ड, हाइ एंड उपचार की आवश्यकता थी और केन्या में यह उपलब्ध नहीं था। यह मामला शिशु की जेनेटिक कंडीशन (डाउन सिंड्रोम) के चलते और भी जटिल हो गया था। ऐसे में मरीज को उपचार के लिए फोर्टिस गुरुग्राम रेफर किया गया, जहां एडवांस इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ इस प्रकार के दुर्लभ पिडियाट्रिक हेमेटोलॉजिकल डिसऑर्डर के इलाज के लिए अनुभवी मल्टी-डिसीप्लीनरी टीम है।
फोर्टिस गुरुग्राम में जब बच्चे को लाया गया तो वह रीलैप्स्ड एवं रिफ्रैक्ट्री कैंसर से पीड़ित था जिसके लिए तत्काल कीमोथेरेपी की जरूरत थी ताकि ट्रांसप्लांटेशन से पहले रोग को नियंत्रित किया जा सके। टीम ने मरीज की कई तरह की जांच की, जिसमें बोन मैरो टेस्ट शामिल था ताकि डायग्नॉसिस की पुष्टि की जा सके और उसकी स्थिति को ध्यान में रखकर उपचार की योजना तैयार की। इस प्रकार के दुर्लभ और जटिल मामलों में, आमतौर से कोई उपचार का कोई मानक प्रोटोकॉल नहीं होता, ऐसे में कस्टमाइज़्ड कीमोथेरेपी और ट्रांसप्लांट की योजना बनायी गई जिसके लिए मेडिकल टीम के क्लीनिकल अनुभवों और अन्य उपलब्ध जानकारी का सहारा लिया गया।
इस साल जनवरी में बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया और शिशु को 21 दिनों तक अस्पताल में मेडिकल निगरानी में रखा गया। इस ट्रांसप्लांट के लिए प्लानिंग, ड्रग टॉक्सिसिटी मैनेजमेंट, ऑर्गेन संबंधी जटिलताओं से बचाव और इंफेक्शन कंट्रोल पर जोर दिया गया, और यह सभी फोर्टिस की स्पेश्यलाइज़्ड पिडियाट्रिक बीएमटी यूनिट की देखरेख में किया गया। ट्रांसप्लांट के 3 महीने बाद, यह शिशु पूरी तरह से रिकवर हो चुका है, और ट्रांसप्लांट भी सफल रहा है तथा वह पूरी तरह से सेहतमंद और सक्रिय है।
डॉ विकास दुआ, प्रिंसीपल डायरेक्टर एंड हेड पिडियाट्रिक हेमेटोलॉजी, हेमेटो ओंकोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस मेमोरियल इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने इस मामले की जानकारी देते हुए कहा, “यह मामला चुनौतीपूर्ण और दुर्लभ कंडीशंस के मामले में फोर्टिस के वर्ल्ड-क्लास बोन मैरो ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के प्रभावों को दर्शाता है। इस ट्रांसप्लांट से न सिर्फ इस शिशु को नया जीवनदान मिला बल्कि इस प्रकार के दुर्लभ जेनेटिक और ब्लड डिसऑर्डर का सटीक तरीके से दयाभाव के साथ उपचार करने की हमारी योग्यता को भी प्रदर्शित किया। भारत में डाउन सिंड्रोम के मरीज के रीलैप्स्ड एएमएल मामले में उपचार के मामले गिने-चुने ही हैं, और इस मामले ने इम्युनोडेफिशिएंसी तथा रीलैप्स्ड मैलिग्नेंसी समेत जटिल पिडियाट्रिक कंडीशन का अत्याधुनिक तौर-तरीकों से उपचार करने की फोर्टिस की प्रतिबद्धता को दर्शाया है।”
डॉ दुआ ने बताया, “डाउन सिंड्रोम करीब 700 से 1000 जीवित जन्मे शिशुओं में से 1 को प्रभावित करता है, यह 5 वर्ष की अवस्था से पहले ल्युकेमिया का खतरा 2% तक बढ़ाता है और कुछ बच्चों में माइलॉयड ल्युकेमिया का रिस्क 150-गुना तक बढ़ जाता है। इसके अलावा, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों में 25% एएमएल के मामले रिफ्रेक्ट्री या रीलैप्स होते हैं, जिसके चलते इलाज की प्रक्रिया और भी जटिल हो जाती है और नतीजे भी ज्यादा उत्साहजनक नहीं होते। अध्ययनों से पता चला है कि ऐसे रीलैप्स्ड/रिफ्रेक्ट्री मामलों में बचने की संभावना भी दुनियाभर में घटकर 22% तक रह जाती है।”