Abdullah Azam Case: आज़म खान को डबल पैन कार्ड केस में 7 साल की सजा, रामपुर में समर्थकों में मातम

Abdullah Azam Case: आज़म खान को डबल पैन कार्ड केस में 7 साल की सजा, रामपुर में समर्थकों में मातम
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश की राजनीति के प्रभावशाली चेहरे आज़म खान को डबल पैन कार्ड फर्जीवाड़े के मामले में सात साल की सजा सुनाए जाने के बाद रामपुर में गम और सदमे का माहौल है। उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म को भी समान सजा और 50,000 रुपये जुर्माने के साथ दोषी ठहराया गया। फैसले के बाद दोनों को कोर्ट परिसर से ही न्यायिक हिरासत में ले लिया गया, जिसके बाद जिला जेल के बाहर भारी भीड़ उमड़ पड़ी।
आज़म खान, जो दो महीने पहले ही जेल से रिहा होकर बाहर आए थे, राजनीतिक गतिविधियों में फिर सक्रिय हुए थे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनसे दो मुलाकातें कीं, जिससे राजनीतिक हलचल बढ़ गई थी। लेकिन आज के फैसले ने आज़म और उनके समर्थकों को गहरा आघात पहुंचाया।
कोर्ट द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद मीडिया ने जब आज़म खान से प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने बेहद संक्षिप्त लेकिन सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा—”अदालत का फैसला है। बेहतर है, गुनाहगार समझा तो सजा सुनाई है।” उनका यह बयान शांत, संयत और स्वीकार्यता से भरा था, जिसने माहौल की गंभीरता को और गहरा कर दिया।
रामपुर में समर्थकों का दर्द साफ दिखा। फैसले की खबर मिलते ही कई समर्थकों की आंखें भर आईं। जिला जेल के बाहर खड़े लोग एक-दूसरे को गले लगाकर रोते दिखाई दिए। कई बुजुर्ग समर्थकों ने कहा कि यह फैसला उनके नेता के लंबे सामाजिक संघर्ष पर प्रश्नचिन्ह जैसा महसूस हो रहा है। जबकि कुछ समर्थकों ने इसे राजनीतिक निर्णय बताते हुए “ब्लैक डे” कहा और न्यायपालिका पर सरकार के दबाव का आरोप लगाया।
वहीं दूसरी तरफ विरोधियों का साफ कहना है कि कानून ने अपना काम किया है। उनके अनुसार अदालत ने ठोस सबूतों की जांच के बाद ही यह सजा सुनाई है और यह मामला किसी राजनीतिक प्रभाव का परिणाम नहीं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
यह मामला वर्ष 2019 में तब सामने आया था जब बीजेपी नेता आकाश सक्सेना ने आरोप लगाया कि अब्दुल्ला आज़म ने दो अलग-अलग जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर दो पैन कार्ड बनवाए, और यह सब कथित रूप से आज़म खान के निर्देश पर हुआ। इस मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद एक लंबी कानूनी लड़ाई शुरू हुई, जिसमें निचली अदालत, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तीनों ने किसी भी स्तर पर आज़म खान या अब्दुल्ला को राहत नहीं दी।
6 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्ला की वह याचिका भी खारिज कर दी जिसमें एफआईआर रद्द करने की मांग की गई थी। न्यायालय ने साफ कहा कि केस समाप्त करने का कोई आधार नहीं है। इसके बाद आज आए फैसले ने मामले को निर्णायक मोड़ दे दिया।
रामपुर की फिज़ा आज बेहद भारी रही—एक तरफ न्याय की जीत का दावा, तो दूसरी ओर समूहों में इकट्ठा होकर मायूस चेहरे, रोते समर्थक और राजनीतिक हलचल का बढ़ता तापमान। आने वाले दिनों में यह फैसला प्रदेश की राजनीति में बड़ा असर छोड़ सकता है।
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