
नई दिल्ली, 14 अक्तूबर : राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने आठ दवाओं की अधिकतम कीमतों में 50 प्रतिशत इजाफे की मंजूरी दे दी है। नई अधिकतम कीमतें तय करने के बारे में एनपीपीए को कई मैन्युफैक्चरर से आवेदन मिले थे। इसमें सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयवों की लागत और उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी जैसे कारणों का उल्लेख किया गया था।
एनपीपीए के अनुसार, दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी का मकसद सार्वजनिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए दवाओं की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करना है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, यह फैसला 8 अक्तूबर को एनपीपीए की बैठक के दौरान औषधि (मूल्य नियंत्रण ) आदेश, 2013 के पैरा 19 के तहत दी गई असाधारण शक्तियों का उपयोग करते हुए किया गया। इस कदम का उद्देश्य सस्ती दवा उपलब्ध कराने के जनादेश से समझौता किए बिना इन दवाओं के निर्माण की वित्तीय व्यवहार्यता को बनाए रखना है। एनपीपीए का पहला उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आवश्यक दवाएं उचित मूल्य पर उपलब्ध हों।
हालांकि, दवा निर्माताओं की ओर से सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (एपीआई) की बढ़ती लागत, उत्पादन खर्च में वृद्धि और विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव के कारण मूल्य संशोधन की मांग की गई थी। जिन दवाओं की कीमतों में वृद्धि को मंजूरी दी गई है उनमें अस्थमा, ग्लूकोमा, थैलेसीमिया, तपेदिक और मानसिक स्वास्थ्य विकारों जैसी स्थितियों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली दवाएं शामिल हैं। इन दवाओं का उपयोग अक्सर सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में प्रथम-पंक्ति उपचार के रूप में किया जाता है और मूल्य समायोजन का उद्देश्य उत्पादन चुनौतियों के कारण दवाओं की कमी या अनुपलब्धता को रोकना है।
मूल्य वृद्धि से प्रभावित दवाओं की सूची में बेंजिल पेनिसिलिन 10 लाख आईयू इंजेक्शन, एट्रोपिन इंजेक्शन 0.6 एमजी/एमएल, इंजेक्शन के लिए स्ट्रेप्टोमाइसिन पाउडर (750 एमजी और 1000 एमजी) साल्बुटामोल टैबलेट (2 एमजी और 4 एमजी) और रेस्पिरेटर सॉल्यूशन (5एमजी/एमएल), पिलोकार्पिन 2 % ड्रॉप्स, सेफैड्रोक्सिल टैबलेट 500 एमजी, इंजेक्शन के लिए डेसफेरियोक्सामाइन 500एमजी और लिथियम टैबलेट 300 एमजी शामिल हैं। इससे पहले वर्ष 2019 और 2021 ऐसे कदम उठाए गए थे। तब क्रमश: 21 और 9 तरह की दवाओं की कीमतों में 50 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी।