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Delhi News : बिहार 2025 सियासी पुनर्संयोजन, उभरती ताकतें और उच्च दांव वाला चुनावी संग्राम : डॉ. अनिल सिंह

जैसे-जैसे बिहार 2025 के विधानसभा चुनावों की ओर बढ़ रहा है, राज्य की राजनीति...

Delhi News : जैसे-जैसे बिहार 2025 के विधानसभा चुनावों की ओर बढ़ रहा है, राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण पुनर्संयोजन और रणनीतिक पुनर्रचना देखने को मिल रही है। यहां प्रमुख राजनीतिक दलों की तैयारियों और उन कारकों का विश्लेषण प्रस्तुत है जो मतदाता भावना को प्रभावित कर सकते हैं।

डॉ. अनिल सिंह (लेखक)

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन NDA

लेखक डॉ. अनिल सिंह कहते है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसमें मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (यूनाइटेड) JDU शामिल हैं, हाशिए पर मौजूद समुदायों को साधने की रणनीति पर काम कर रहा है। अनुमान है कि इसके 75% से अधिक उम्मीदवार अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), अनुसूचित जाति (SC) और महा दलित वर्गों से होंगे। यह रणनीति जातीय समीकरणों और सामाजिक इंजीनियरिंग पर आधारित है।हालांकि, गठबंधन को आंतरिक चुनौतियों का भी सामना है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने सीट बंटवारे को लेकर असहमति के चलते अलग से चुनाव लड़ने की घोषणा की है। यह कदम NDA की एकता और वोट बैंक को चुनौती दे सकता है।

INDIA गठबंधन के नेतृत्व और समावेश की चुनौतियां

उन्होंने कहा INDIA गठबंधन, जिसमें मुख्य रूप से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस शामिल हैं, नेतृत्व संकट से जूझ रहा है। यह चर्चा हो रही है कि क्या पार्टी अध्यक्ष के रूप में लालू प्रसाद यादव बने रहेंगे या नेतृत्व तेजस्वी यादव को सौंपा जाएगा। यह बहस तब और महत्वपूर्ण हो गई है जब पार्टी में युवाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है। इसके साथ ही, AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) जैसे दलों को शामिल करने पर भी विचार चल रहा है। असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व में AIMIM की संभावित भागीदारी INDIA गठबंधन को पारंपरिक दायरे से बाहर ले जाकर नए वर्गों तक पहुंचने में मदद कर सकती है।

नई ताकतें बसपा और जन सुराज पार्टी

उन्होंने कहा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने सभी 243 विधानसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है। यह रुख पारंपरिक वोट बैंक में खलल डाल सकता है और चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। प्रशांत किशोर के नेतृत्व में जन सुराज पार्टी भी चुनावी मैदान में उतर रही है। हाल की उपचुनावों में सीट नहीं मिलने के बावजूद पार्टी ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय वोट हासिल किए हैं, जिससे संकेत मिलता है कि वह करीबी मुकाबलों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

मतदाता भावना को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

उन्होंने कहा मेरी पुस्तक “बिहार-कैओस-टू-कैओस (2013)” में मैंने बिहार के कई विधानसभा चुनावों में जाति आधारित मतदान व्यवहार का गहन विश्लेषण किया है। यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि राज्य में जातिगत पहचान मतदाताओं के फैसलों में आज भी एक निर्णायक भूमिका निभाती है।

चुनाव 2025 में मतदाताओं की सोच को प्रभावित करने वाले मुख्य मुद्दे

1. जातिगत समीकरण: जाति आधारित जनगणना की मांग अब भी केंद्रीय मुद्दा बनी हुई है।

2. आर्थिक मुद्दे: बेरोजगारी, पलायन और भ्रष्टाचार मतदाताओं की प्राथमिक चिंताएं हैं।

3. महिला सशक्तिकरण: महिलाओं को लुभाने वाली योजनाएं विशेष महत्व रखती हैं। जद(यू) की पिछली पहलें एक मानक बन चुकी हैं, जिनसे विपक्षी दलों पर भी दबाव बना है।

4. विधायी प्रभाव: वक्फ संशोधन विधेयक मुस्लिम समुदाय में बहस का कारण बना है, जो कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

5. युवा भागीदारी: युवा आबादी को आकर्षित करने के लिए सभी दल नीतिगत वादा और डिजिटल संपर्क पर ध्यान दे रहे हैं।

आगे की राह : बिहार के भविष्य की दिशा

उन्होंने कहा कि चुनाव के नज़दीक आते ही यह आवश्यक हो गया है कि राजनीतिक दल प्रतीकात्मक नारों से आगे बढ़ें और पारदर्शी शासन, समावेशी नीति निर्माण और दीर्घकालिक विकास की प्रतिबद्धता दिखाएँ।

परिवर्तन की दिशा में कुछ जरूरी कदम

1. गठबंधन केवल गणित नहीं, साझा दृष्टिकोण पर आधारित हों।

2. रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में वादों को ठोस परिणामों में बदला जाए।

3. विकेन्द्रीकरण और स्थानीय सशक्तिकरण से जनता का विश्वास बढ़ेगा।

4. युवाओं और महिलाओं की भागीदारी केवल चुनावी नारों तक सीमित न रहे, बल्कि प्रतिनिधित्व और बजट में भी दिखे।

2025 का चुनाव बिहार के लिए एक नया रास्ता चुनने का अवसर है। एक ऐसा रास्ता जो पुराने ध्रुवीकरण से आगे बढ़कर समावेशी, जवाबदेह और विकासोन्मुख शासन की ओर ले जाए। यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन-से दल इस अवसर को सही मायनों में भुना पाते हैं।

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