नई दिल्ली, 25 नवम्बर: मानव शरीर की सबसे जटिल और नाजुक सर्जरी में से एक स्पाइनल सर्जरी के लिए एम्स दिल्ली के जेपीएनए ट्रॉमा सेंटर ने पहली बार एक शव का प्रयोग किया है। इसके साथ ही भारत शव आधारित शल्य कौशल के क्षेत्र में भी अग्रणी बन गया है। इससे जहां सर्जनों के सर्जरी स्किल में इजाफा हो रहा है। वहीं, गुणवत्तापूर्ण और सटीक सर्जरी की राह प्रशस्त हो रही है।
ट्रॉमा सेंटर के चीफ कामरान फारुख ने सोमवार को बताया कि रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन या स्पाइन सर्जरी एक बेहद जटिल और नाजुक प्रक्रिया है। इसमें जरा सी भी असावधानी मरीज के पैरों में दिक्कत (चलने-फिरने में परेशानी) लाने के साथ मरीज की जान के लिए खतरा भी पैदा कर सकती है। उन्होंने बताया कि स्पाइनल सर्जरी के क्षेत्र में सर्जनों को पारंगत बनाने के लिए पहली बार स्पाइन रोबोटिक्स, नेविगेशन और 3डी इमेजिंग कैडवेरिक प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें एम्स सहित देश -विदेश के 24 सर्जनों को स्पाइनल कॉर्ड सोसाइटी के विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
डॉ फारुख ने बताया कि स्पाइनल सर्जरी के दौरान मरीज की रीढ़ की हड्डी में पेडिकल स्क्रू लगाए जाते हैं। इनका मानक सर्जिकल उपयोग रॉड-स्क्रू सिस्टम में होता है, जहां स्क्रू को कशेरुकाओं के बाएं और दाएं पेडिकल्स पर रखा जाता है और फिर प्रत्येक तरफ दो रॉड का उपयोग करके जोड़ा जाता है। यह रॉड-स्क्रू सिस्टम कशेरुकाओं को एक साथ पकड़कर जोड़े जा रहे रीढ़ के हिस्से को स्थिर करने में मदद करता है। अगर इस दौरान स्क्रू की एक्यूरेसी में हल्की सी भी कमी होती है या स्क्रू थोड़ा सा भी इधर -उधर होता है तो मरीज के लिए विकलांगता या मृत्यु का सबब बन सकता है।
हड्डीरोग विशेषज्ञ से परामर्श के बाद लें फैसला
रीढ़ की हड्डी की समस्या के इलाज के लिए बहुत सारे इलाज के विकल्प मौजूद हैं जैसे कि फिजियोथेरेपी, दवाएं या जीवनशैली में बदलाव, लेकिन जब यह सारे विकल्प विफल हो जाते हैं, तब रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन एक बेहतर विकल्प के तौर पर उत्पन्न होता है। स्थिति के आधार पर ही इस बात का फैसला लिया जा सकता है कि इलाज के लिए किस सर्जरी का उपयोग होगा।