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दो ब्रेन डेड लोगों के परिजनों ने किया अंगदान : 4 को मिली रोशनी, 8 को मिला नया जीवन 

-एम्स ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टर कामरान फारूक के नेतृत्व पहली बार एक साथ दो कैडेवर अंगदान हुए संपन्न

नई दिल्ली, 21 मई : एम्स दिल्ली ने मंगलवार को पहली बार एक साथ दो कैडेवर अंगदान प्रक्रिया को संपन्न किया, जिसके परिणामस्वरूप 8 रोगियों को नया जीवन और 4 रोगियों को दृष्टि प्रदान की जा सकी। अंगदान की यह प्रक्रिया जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर (जेपीएनएटीसी) के प्रमुख डॉक्टर कामरान फारूक के नेतृत्व में सफलतापूर्वक संपन्न की गई।

डॉ फारूक ने बताया कि यह अंगदान काफी चुनौतीपूर्ण था जिसे संपन्न करने के लिए ट्रामा सेंटर की दो ओटी बंद करनी पड़ी। अबतक एक बार में एक ही ब्रेन डेड व्यक्ति के अंगदान के लिए सर्जिकल प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता था और ट्रामा सेंटर की एक ओटी को ही बंद करना पड़ता था। उन्होंने बताया कि यह साल 2024 का छठा दान था जिसे संपन्न करने के लिए मंगलवार सुबह सात बजे से दोपहर दो बजे तक सर्जिकल प्रक्रिया की गई।

डॉ फारूक कहा, दो अलग -अलग सड़क दुर्घटनाओं में गंभीर रूप से घायल महिला और युवक के ब्रेन डेड होने के बाद परिजनों ने उनके अंगदान करके न सिर्फ एक मिसाल कायम की है। बल्कि समाज को अंगदान के प्रति प्रेरणा भी प्रदान की है। उन्होंने बताया कि, पिछले दिनों भिवानी राजस्थान की सुनीता देवी (42 वर्ष) और पलवल हरियाणा के सौरभ कुमार (27 वर्ष) को हेड इंजरी के बाद एम्स दिल्ली के जेपीएनएटीसी में इलाज के लिए लाया गया था।

इस दौरान डॉक्टरों ने मरीजों का लगातार उपचार किया। मगर उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं आया। तब विशेषज्ञ डॉक्टरों के पैनल ने दोनों घायलों की अलग- अलग जांच की और पाया कि उनकी ब्रेन डेथ हो चुकी है और डॉक्टरों ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया। इसके बाद ओआरबीओ, नोट्टो और अंग पुनर्प्राप्ति टीमों के समन्वयकों ने पीड़ितों के परिजनों की काउंसलिंग की और उन्हें उनके मृतक रिश्तेदारों के अंग जरूरतमंद मरीजों को दान करने के लिए तैयार कर लिया।

ओआरबीओ के मुताबिक अंगदान के बाद एम्स दिल्ली को 1 दिल, 1 लिवर, 3 किडनी और 4 कॉर्निया मिले, जबकि आईएलबीएस को एक लिवर और एक किडनी के आवंटन किए गए। वहीं, एक डोनर का दिल सेना के आरआर अस्पताल को आवंटित किया गया और डोनर के फेफड़े केआईएमस हैदराबाद एवं सीआईएमएस अहमदाबाद को आवंटित किए गए, लेकिन निरीक्षण के दौरान इन्हें प्रत्यारोपण के लिए अनुपयुक्त पाया गया। इसलिए दोनों मरीजों के फेफड़ों का उपयोग नहीं किया जा सका।

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