Noida E Bus Project: नोएडा में 500 ई-बस चलाने की योजना अटकी, 180 दिन पूरे होने पर दोनों कंपनियों के टेंडर निरस्त

Noida E Bus Project: नोएडा में 500 ई-बस चलाने की योजना अटकी, 180 दिन पूरे होने पर दोनों कंपनियों के टेंडर निरस्त
नया मॉडल तैयार करेगा शासन, चरणबद्ध तरीके से शुरू हो सकती है ई-बस सेवा
नोएडा। गौतमबुद्ध नगर में लोगों को आधुनिक और पर्यावरण-अनुकूल ई-बस सेवा का इंतजार अभी और लंबा हो गया है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में प्रस्तावित 500 इलेक्ट्रिक बसों के संचालन की योजना फिलहाल ठंडे बस्ते में चली गई है। शासन स्तर पर आवश्यक संयुक्त एसपीवी (स्पेशल पर्पज व्हीकल) का गठन न होने और टेंडर प्रक्रिया के 180 दिन से अधिक समय बीत जाने के कारण दोनों चयनित कंपनियों के टेंडर को निरस्त कर दिया गया है।
करीब छह महीने पहले इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत ट्रैवल टाइम मोबिलिटी इंडिया और डेलबस मोबिलिटी का चयन किया गया था। इन कंपनियों को 12 वर्षों के लिए ग्रॉस कॉस्ट मॉडल पर ई-बसों की आपूर्ति, संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी सौंपी जानी थी। लेकिन जीबीएन ग्रीन ट्रांसपोर्ट लिमिटेड नाम की जिस संयुक्त एसपीवी के माध्यम से बस सेवा चलाई जानी थी, उसका गठन समय पर नहीं हो सका। अन्य प्राधिकरणों की ओर से अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण यह प्रक्रिया अटक गई और अंततः शासन को टेंडर निरस्त करने का निर्णय लेना पड़ा।
नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि चयनित कंपनियों द्वारा जमा की गई ईएमडी (अर्नेस्ट मनी डिपॉजिट) की राशि उन्हें वापस कर दी जाएगी। इसके साथ ही ई-बस संचालन के लिए नई प्रक्रिया शुरू की जाएगी और जल्द ही दोबारा टेंडर जारी किया जाएगा। इस बार पूरा मॉडल शासन स्तर पर नए सिरे से तैयार किया जाएगा, जिसमें बड़े बदलाव किए जाने की संभावना है। माना जा रहा है कि इस बार यूपी रोडवेज (यूपीएसआरटीसी) को भी इस योजना में शामिल किया जा सकता है।
नए मॉडल के तहत बस डिपो, चार्जिंग स्टेशन, सर्विस सेंटर जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण संबंधित प्राधिकरण स्वयं करेंगे, जबकि संचालन की जिम्मेदारी एजेंसी को सौंपी जा सकती है। अधिकारियों का कहना है कि पूरी प्रक्रिया में लगभग 30 दिन का समय लग सकता है। यदि सब कुछ तय समय पर हुआ तो फरवरी माह तक नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना विकास प्राधिकरण क्षेत्र में ई-सिटी बस सेवा शुरू होने की संभावना है।
इस योजना का मूल उद्देश्य पब्लिक ट्रांसपोर्ट को मजबूत करना और निजी वाहनों पर निर्भरता कम करना था। 500 ई-बसों की यह परियोजना लगभग 675 करोड़ रुपये की थी और इसका नोडल एजेंसी नोएडा प्राधिकरण को बनाया गया था। एसपीवी गठन की जिम्मेदारी भी नोएडा प्राधिकरण को सौंपी गई थी, लेकिन अन्य प्राधिकरणों से समय पर सहमति और भागीदारी न मिलने से योजना आगे नहीं बढ़ सकी।
अब शासन स्तर पर यह विचार किया जा रहा है कि बसों को एक साथ उतारने के बजाय ऑन-डिमांड मॉडल अपनाया जाए। यानी जितनी आवश्यकता हो, उतनी ही बसें सड़कों पर उतारी जाएं। इससे तीनों प्राधिकरणों पर वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) का बोझ भी कम होगा और बेहतर तरीके से इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा सकेगा। इसके साथ ही बसों के रूट भी स्पष्ट रूप से तय किए जाएंगे, ताकि जहां जरूरत हो वहीं सेवा उपलब्ध कराई जा सके।
अधिकारियों के अनुसार, 500 बसों के मौजूदा मॉडल पर सालाना करीब 225 करोड़ रुपये की वीजीएफ की जरूरत होती, जिसमें अकेले नोएडा प्राधिकरण को 107 करोड़ रुपये से अधिक की राशि वहन करनी पड़ती। बिना पर्याप्त मांग और मजबूत सिस्टम के इतनी बड़ी वित्तीय जिम्मेदारी लेना जोखिम भरा माना गया। इसी वजह से पूरे प्रोजेक्ट को फिलहाल रोककर नए सिरे से डिजाइन करने का फैसला लिया गया है।
अब इस महत्वाकांक्षी ई-बस परियोजना का भविष्य पूरी तरह राज्य सरकार के फैसले पर निर्भर है कि इसे चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाया जाएगा या पूरी योजना को नए स्वरूप में लागू किया जाएगा।
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