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फंगस रोधी प्रभावी दवा बनाने में मदद करेगा जामिया का नया मॉलिक्यूल

-नए मॉलिक्यूल से फार्मास्युटिकल केमिस्ट्री के क्षेत्र में होगी महत्वपूर्ण प्रगति

नई दिल्ली, 26 सितम्बर: जामिया मिल्लिया इस्लामिया के शोधार्थियों ने दो ऐसे मॉलिक्यूल बीजी 8 और बीजी 10 की खोज की है जो एंटीफंगल दवाओं के निर्माण में बेहद उपयोगी और प्रभावी साबित होंगे। इस एंटीफंगल सर्फेक्टेंट के विकास के लिए जामिया के प्रो राजन पटेल और डॉ. फारूक अहमद वानी को भारत सरकार से पेटेंट भी मिल गया है।

प्रो पटेल के मुताबिक फंगस संक्रमण (कैंडिडिआसिस) की रोग संबंधी स्थिति के 50-60% मामलों के लिए सी एल्बीकैंस को जिम्मेदार माना जाता है। जब नवीन बेंजिमिडाजोलियम जेमिनी सर्फेक्टेंट्स (बीजी 8 और बीजी 10) का संश्लेषण और उनकी एंटी-कैंडिडा गतिविधि का मूल्यांकन किया गया तो पाया कि यह फंगस संक्रमण पर बेहद असरदार है। यह सर्फेक्टेंट्स बायोडिग्रेडेबल है जो प्रभावी एंटीफंगल गुण प्रदान करता है।

उन्होंने बताया कि हमारे शोध को अमेरिकन केमिकल सोसायटी (एसीएस) से भी मान्यता मिल चुकी है। यह नई प्रक्रिया फार्मास्युटिकल केमिस्ट्री के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रगति है। राजन पटेल ने बताया कि सर्फेक्टेंट का इस्तेमाल औषधीय क्षेत्र में भी किया जाता है। साथ ही खराब घुलनशील दवाओं को घुलनशील बनाने, उनके विघटन को बेहतर बनाने और औषधि वितरण में सुधार करने के लिए किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस शोध में जैव विज्ञान विभाग के डॉ. मोहम्मद आबिद, डॉ. बबीता अनेजा एवं डॉ. अमदुद्दीन ने भी सहयोग किया है।

क्या होते हैं एंटीफंगल एजेंट
एंटी फंगल एजेंट, यीस्ट और मोल्ड से लड़ने वाले यौगिक होते हैं। ये प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। साथ ही कृत्रिम रूप से भी बनाए जाते हैं। एंटीफंगल दवाओं का इस्तेमाल, त्वचा, नाखून, मुंह, या योनि में होने वाले फंगल संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है। ये दवाएं क्रीम, ओरल ड्रॉप, लोज़ेंज, पेसरी, पाउडर, या नेल लैकर के रूप में उपलब्ध होती हैं।

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