
Delhi News : पर्यावरण एक ऐसा विषय है जिस पर बात बहुत होती है और शायद बात ही ज्यादा होती है, इसलिए हालात जैसे होने चाहिए थे, नहीं हैं। अभिषेक मेहरोत्रा कहते है कि निसंदेह पर्यावरण के प्रति हम जागरूक हुए हैं लेकिन जागरूकता का स्तर ज़रूरत अनुसार नहीं है। आज भी अधिकांश लोगों को लगता है कि पौधा लगाना ही पर्यावरण संरक्षण है। जबकि ऐसा नहीं है आप हर रोज, किसी न किसी तरीके से पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकते हैं।
रीसाइकलिंग पर्यावरण संरक्षण
उन्होंने कहा कि आगरा का नया खुला स्टोर सेकंड चांस यही तो कर रहा है, यहां सबकुछ रीसाइकल्ड है। रीसाइकलिंग पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, इससे प्राकृतिक संसाधनों की बचत के साथ ही ऊर्जा की बचत होती है और प्रदूषण भी कम होता है। क्लीन आगरा, ग्रीन आगरा के नारे को साकार करने के लिए इस तरह की पहल बेहद ज़रूरी है। उनका कहना सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि पर्यावरण संरक्षण हम सबकी जिम्मेदारी है। आप अकेले सरकार पर सब कुछ नहीं छोड़ सकते। सरकार जनभागीदारी के बिना कुछ नहीं कर सकती। यह एक तरह का जॉइंट वेंचर है, जिसमें दोनों पक्षों को बराबर प्रयास करने होंगे, तभी लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।
हफीज़ जौनपुरी ने बहुत सुंदर बात कही है
‘ये सब कहने की बातें हैं कि ऐसा हो नहीं सकता, मोहब्बत में जो दिल मिल जाए फिर क्या हो नहीं सकता’
उन्होंने कहा कि हमें बस पर्यावरण के प्रति मोहब्बत जगानी है और फिर सब कुछ अपने आप होता जाएगा। छोटे-छोटे कदम बढ़ाकर, अपनी आदतों में सुधार लाकर और सेकंड चांस जैसे इनिशिएटिव को सपोर्ट करके हम पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। पोलीथीन पर बैन है, लेकिन उसके बावूजद बाजार में धड़ल्ले से इस्तेमाल होती है क्यों? अधिकांश लोगों का जवाब होगा, क्योंकि सरकार-प्रशासन प्रतिबंध पर अमल में नाकाम रहे हैं। चलिए इसे सही मान भी लें, तो क्या आपने अपनी जिम्मेदारी निभाई? यदि हम पोलीथीन इस्तेमाल ही नहीं करेंगे तो भी क्या उसका उत्पादन होता रहेगा? इसमें कोई दोराय नहीं है कि बड़े उद्देश्यों को प्राप्त करने में नीति निर्माता की जिम्मेदारी अधिक होती है. लेकिन इससे हमारी जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती।
पर्यावरण बचाना अब हम सबका प्रथम कर्तव्य
अभिषेक मेहरोत्रा कहते है सेकंड चांस स्टोर पर आपको रीसाइकल्ड बैग मिल जाएंगे। उन्हें खरीदकर पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की शुरुआत कीजिए, एक तरह से ये समझिए कि पर्यावरण बचाना अब हम सबका प्रथम कर्तव्य है। इसलिए सेकंड चांस को जीवन का फर्स्ट चांस समझ इस ओर जुट जाइए। सरकार को भी अब इस मुद्दे पर आउट-ऑफ-द-बॉक्स सोचने की ज़रूरत है। कई देशों में ‘निर्माता की जिम्मेदारी’ निर्धारित है। अपने उत्पाद बेचने के बाद उनके रैपर कलेक्ट करना निर्माता की जिम्मेदारी के तहत आता है। भारत देश में भी यह व्यवस्था लागू होनी चाहिए और कुछ कंपनियां स्वेच्छा से ऐसा कर रही हैं। इस तरह वे प्लास्टिक कचरे को कम करने और पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाने का प्रयास कर रही हैं। इन कंपनियों द्वारा अपने खाली रैपर को रिसाइकल करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया पर अनिवार्य का टैग लगाना ज़रूरी है।
प्लास्टिक पर्यावरण का दम घोंट रही
उन्होंने कहा अगर ‘निर्माता की जिम्मेदारी’ के तहत इसे अनिवार्य बनाया जाता है तो जगह-जगह बिखरे पड़े रहने वाली प्लास्टिक में कमी लाई जा सकती है। ये प्लास्टिक पर्यावरण का दम घोंट रही है। इसके अलावा लगता है कि अब पेड़ों की कटाई को लेकर नियमों में भी बदलाव की ज़रूरत है। कई बार अच्छे के लिए बनाए गए नियम भी मुश्किलों की वजह बन जाते हैं और इस मामले में भी यही हो रहा है। पेड़ चाहे घर के अंदर हो या बाहर, उसकी ज़रूरतों से ज्यादा फैलती टहनियों पर कैंची चलाने के लिए भी अनुमति लेनी होती है। इस अनुमति के झंझट के चलते लोगों ने ऐसे पौधे लगाने बंद या कम कर दिए हैं, जो पेड़ बनकर पर्यावरण संरक्षण का हिस्सा बनते।
जमीनों पर जंगल बसाने को प्रेरित
पहले घर के आसपास, गांव, सड़क किनारे आसमान छूते पेड़ होते थे। गुलदार, पीपल, नीम बरगद जैसे पेड़ नजर आना आम था, लेकिन अब इन्हें खोजना पड़ता है। पेड़ों का काम पर्यावरण संरक्षण से कहीं ज्यादा है, लकड़ी का एक पूरा उद्योग है और इस उद्योग का भविष्य पेड़ों पर टिका हुआ है। पहले इस उद्योग से जुड़े व्यवसायी अपनी निजी जमीनों पर जंगल बसाने को प्रेरित होते थे, ताकि ज़रूरत के हिसाब से पेड़ों को काटकर काम में लाया जा सके। लेकिन कटाई पर रोक और अनुमति के झंझट ने उन्हें इससे दूर कर दिया है। ऐसा भी नहीं है कि पेड़ों की कटाई पर रोक से पेड़ कटना पूरी तरह बंद हो गए, बल्कि अवैध कटाई बदस्तूर जारी है। लिहाजा अब समय आ गया है कि पूरी व्यवस्था में बदलाव किया जाए।