
नई दिल्ली, 18 सितम्बर :अक्सर बड़ी सर्जरी के बाद मरीज का आइसीयू में पहुंच जाना और वेंटीलेटर पर आना तो आप सबने सुना होगा। मगर फेफड़े की गंभीर समस्या के चलते आइसीयू में भर्ती मरीज (शिशु) की जीवन रक्षक थोरैकोस्कोपिक (कीहोल) लंग सर्जरी संपन्न होने का मामला शायद आपके संज्ञान में नहीं आया होगा।
दरअसल, एम्स दिल्ली के बाल शल्य चिकित्सा विभाग के पास बिहार से रेफर होकर पहुंचे एक शिशु ( 50 दिन आयु ) की स्थिति इतनी गंभीर थी कि वह बुरी तरह हांफ रहा था। सही से सांस नहीं ले पा रहा था। यह शिशु जन्मजात फुफ्फुसीय वायुमार्ग विकृति (सीपीएएम) से पीड़ित था जिसमें फेफड़े के एक हिस्से का असामान्य विकास होता है। यानि सामान्य से बड़े आकार के बाएं फेफड़े से बनी गांठ ने ना सिर्फ शिशु के स्वस्थ फेफड़े को बुरी तरह से दबा दिया था। बल्कि सांस लेने में होने वाली दिक्कत को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था, जिससे सर्जरी से पहले ही उसे वेंटिलेटर सपोर्ट पर निर्भर रहना पड़ा।
एम्स के सर्जन डॉ विशेष जैन ने इस शिशु के उपचार के लिए ओपन चेस्ट ऑपरेशन के बजाय 3-5 मिमी उपकरणों और एक छोटा कैमरा का उपयोग करते हुए न्यूनतम इनवेसिव थोरैकोस्कोपिक सर्जरी करने का विकल्प चुना। जबकि एनेस्थीसिया का प्रबंधन डॉ. राकेश कुमार ने किया। जैन ने शिशु दोनों फेफड़ों को वेंटिलेट करते हुए ऑपरेशन करने की अतिरिक्त चुनौती के बावजूद, फेफड़े के रोगग्रस्त हिस्से को केवल एक सेंटीमीटर चौड़े चीरे के माध्यम से हटा दिया।
डॉ. जैन ने कहा, केवल 2.5 किलोग्राम वजन वाले इतने नाज़ुक शिशु का ऑपरेशन वास्तव में बाल शल्य चिकित्सा की सीमाओं को आगे बढ़ाता है। यह सर्जिकल टीम और एम्स की अत्याधुनिक सुविधाओं के संयुक्त प्रयास से ही संभव हो पाया। विभागाध्यक्ष डॉ. संदीप अगरवाला ने कहा, यह मामला सबसे छोटे और सबसे कमजोर रोगियों को भी अत्याधुनिक देखभाल प्रदान करने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। सर्जरी के बाद बच्चा ना सिर्फ तेजी से ठीक हो रहा है। बल्कि बिना तकनीकी सहारे के सांस ले रहा है।
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