Dev Deepawali Varanasi: वाराणसी में जगमगाई देव दीपावली: गंगा तट पर लाखों दीपों से सजी काशी, उमड़ा भक्तों का सैलाब

Dev Deepawali Varanasi: वाराणसी में जगमगाई देव दीपावली: गंगा तट पर लाखों दीपों से सजी काशी, उमड़ा भक्तों का सैलाब
‘देवताओं की दीपावली’ पर काशी की गलियों से लेकर घाटों तक छाया भव्य आलोक उत्सव
वाराणसी, 25 नवंबर: पवित्र गंगा तट पर इस बार भी देव दीपावली का नजारा अद्भुत रहा। कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर वाराणसी के घाटों पर लाखों दीप जलाए गए, जिससे पूरी काशी सुनहरी रोशनी में नहा उठी। देव दीपावली, जिसे ‘देवताओं की दीपावली’ कहा जाता है, हर साल दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाई जाती है।
माना जाता है कि इस दिन देवता स्वयं स्वर्ग से उतरकर गंगा में स्नान करने आते हैं। श्रद्धालु गंगा स्नान, दीपदान और भगवान शिव की आराधना कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। जैसे ही सूर्यास्त होता है, काशी के अस्सी से लेकर पंचगंगा घाट तक लाखों दीपों की कतारें जगमगा उठती हैं।
गंगा आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से गूंज उठी काशी, प्रशासन ने की विशेष व्यवस्था
देव दीपावली के अवसर पर वाराणसी के दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, राजघाट, पंचगंगा घाट और मणिकर्णिका घाट पर हजारों श्रद्धालु जुटे। शाम की गंगा आरती के दौरान पूरा वातावरण मंत्रोच्चार और भक्ति संगीत से भर गया।
वाराणसी प्रशासन ने सुरक्षा और ट्रैफिक व्यवस्था के लिए 2,000 से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती की। घाटों की साफ-सफाई और विशेष रोशनी की व्यवस्था ने इस धार्मिक आयोजन को और भी आकर्षक बना दिया।
स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत कथक नृत्य, शास्त्रीय संगीत और लोकगाथाओं ने काशी के घाटों को सांस्कृतिक रंगों से भर दिया। पर्यटकों के लिए नौका विहार और ‘लाइट एंड साउंड शो’ की भी व्यवस्था की गई, जिससे लोग गंगा के दोनों किनारों से दीपों का दृश्य देख सकें।
धार्मिक और पर्यटन दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व, देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालु
देव दीपावली केवल धार्मिक पर्व नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक और पर्यटन उत्सव भी है। हर साल हजारों देशी-विदेशी पर्यटक इस दिव्य नज़ारे को देखने वाराणसी पहुंचते हैं। होटल और गेस्टहाउस कई दिन पहले से फुल बुक हो जाते हैं।
इस बार भी काशी के घाटों पर पर्यटकों की भारी भीड़ रही। गंगा के दोनों किनारे दीपों की सुनहरी परत से ढंके हुए थे और आसमान में आतिशबाज़ी की चमक ने उत्सव को और भव्य बना दिया।
स्थानीय कारोबारियों और कारीगरों के लिए भी यह पर्व आर्थिक दृष्टि से बेहद लाभदायक रहा। दीप निर्माण, पूजा सामग्री, हस्तशिल्प और पारंपरिक परिधानों की बिक्री में जबरदस्त वृद्धि दर्ज की गई।
क्यों है Dev Deepawali इतना खास?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देव दीपावली के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। तभी देवताओं ने गंगा के तट पर दीप जलाकर विजय का उत्सव मनाया था। तभी से इस दिन को ‘देव दीपावली’ कहा जाता है।
वाराणसी में यह पर्व न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक एकता और सौंदर्य का भी प्रदर्शन करता है।
देव दीपावली का यह पावन पर्व हर वर्ष काशी को प्रकाश, भक्ति और संस्कृति की नगरी के रूप में पुनः स्थापित करता है। लाखों दीपों से सजी यह रात न केवल श्रद्धा का प्रतीक है बल्कि भारत की अमर परंपरा का भी जीवंत प्रमाण है।





