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Stroke Management AI: स्ट्रोक मैनेजमेंट और रिकवरी में AI दे रहा नई उम्मीदें, तेज़ निदान और पर्सनलाइज्ड उपचार संभव

Stroke Management AI: स्ट्रोक मैनेजमेंट और रिकवरी में AI दे रहा नई उम्मीदें, तेज़ निदान और पर्सनलाइज्ड उपचार संभव

रिपोर्ट: अजीत कुमार

नोएडा: दुनिया भर में स्ट्रोक मृत्यु और स्थायी अक्षमता के प्रमुख कारणों में से एक है, जो हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करता है। स्ट्रोक के उपचार में समय की अहमियत बेहद ज़्यादा है क्योंकि हर सेकंड की देरी मस्तिष्क की कीमती कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकती है। अब तक डायग्नोसिस और उपचार में डॉक्टर की विशेषज्ञता और CT/MRI जैसी इमेजिंग तकनीक पर निर्भर किया जाता रहा है। लेकिन आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) ने स्ट्रोक मैनेजमेंट को एक नया आयाम दे दिया है। AI अब डायग्नोसिस, उपचार योजना और रिकवरी के हर चरण को तेज़, सटीक और प्रभावी बना रहा है।

स्ट्रोक की शुरुआती और सही पहचान बेहतर उपचार की नींव है। AI आधारित डायग्नोस्टिक प्लेटफ़ॉर्म ब्रेन स्कैन को रियल-टाइम में विश्लेषित कर तुरंत पहचान करते हैं कि स्ट्रोक इस्केमिक है या हेमरेजिक। क्योंकि दोनों प्रकार के स्ट्रोक का इलाज अलग होता है, AI की मदद से समय पर सही निर्णय लेना संभव हुआ है। बत्रा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंटर, नई दिल्ली के न्यूरोलॉजी एवं इंटरवेंशनल न्यूरो रेडियोलॉजी विभाग के डायरेक्टर डॉ. बिप्लब दास बताते हैं कि AI इमेजिंग टूल्स डॉक्टरों को ब्लॉकेज, सूक्ष्म हेमरेज और ब्रेन डैमेज की सीमा पहचानने में मदद करते हैं, जिससे थ्रोम्बोलिसिस या मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी जैसे जीवनरक्षक उपचार तेजी से शुरू किए जा सकते हैं।

AI केवल डायग्नोसिस तक सीमित नहीं है। मशीन लर्निंग मॉडल हजारों मरीजों के डेटा का विश्लेषण कर यह तय कर सकते हैं कि किस मरीज के लिए कौन-सा उपचार सबसे प्रभावी होगा। उम्र, मेडिकल हिस्ट्री, स्ट्रोक की गंभीरता और अन्य स्वास्थ्य स्थितियों के आधार पर AI डॉक्टरों को सुरक्षित और बेहतर विकल्प चुनने में मदद करता है। इस्केमिक स्ट्रोक में AI यह बता सकता है कि कौन-से मरीज क्लॉट घोलने वाली दवाओं या सर्जिकल क्लॉट रिमूवल के लिए उपयुक्त हैं। हेमरेजिक स्ट्रोक में AI ब्लीडिंग पैटर्न का अनुमान लगाकर सर्जरी को अधिक सुरक्षित और प्रभावी बनाता है, जिससे जटिलताओं में कमी आती है और रिकवरी बेहतर होती है।

जहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है, वहां AI आधारित टेलीमेडिसिन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। क्लाउड बेस्ड प्लेटफ़ॉर्म और मोबाइल ऐप्स के जरिए दूरदराज़ के अस्पताल विशेषज्ञों से रियल-टाइम में सलाह ले सकते हैं। AI आधारित ट्रायेज सिस्टम एम्बुलेंस से ही मरीज की जानकारी अस्पताल तक पहुंचा देता है, जिससे “डोर-टू-नीडल टाइम” काफी कम हो जाता है और बचाव व रिकवरी की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

स्ट्रोक के बाद की लंबी रिकवरी में भी AI मददगार साबित हो रहा है। AI युक्त वियरेबल डिवाइस चलते-फिरते समय मरीज की मांसपेशियों और मूवमेंट को मॉनिटर करते हैं और रियल-टाइम फीडबैक देते हैं, जिससे फिजियोथेरेपी अधिक प्रभावी होती है। भाषा और स्मृति संबंधी समस्याओं में AI आधारित वर्चुअल असिस्टेंट और चैटबॉट मरीजों को इंटरएक्टिव थेरेपी प्रदान कर रहे हैं। भविष्यवाणी करने वाले AI मॉडल डॉक्टरों को स्ट्रोक और पोस्ट-स्ट्रोक डिप्रेशन जैसी जटिलताओं का पूर्व अनुमान लगाने में मदद करते हैं।

भविष्य में AI और भी उन्नत होगा—जीन और बायोमार्कर डेटा के आधार पर स्ट्रोक के जोखिम का पूर्व अनुमान, AI संचालित रोबोटिक सर्जरी और अत्यंत सटीक न्यूरोवस्कुलर प्रक्रियाएं स्वास्थ्य सेवाओं को नए स्तर पर ले जाएंगी। हालांकि डेटा प्राइवेसी, मॉडल की विश्वसनीयता और सभी समुदायों तक समान पहुंच जैसी चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं।

फिर भी यह स्पष्ट है कि AI अब सिर्फ सहायक तकनीक नहीं बल्कि आधुनिक स्ट्रोक मैनेजमेंट का मुख्य आधार बनता जा रहा है। तेज़ डायग्नोसिस, पर्सनलाइज्ड उपचार, दूरदराज़ तक पहुंच वाला टेलीकेयर और उन्नत रिहैबिलिटेशन—AI हर चरण को बेहतर बना रहा है। आने वाले समय में स्ट्रोक का परिणाम समय या स्थान पर नहीं बल्कि स्मार्ट टेक्नोलॉजी के उपयोग से तय होगा। AI न केवल जीवन बचा रहा है, बल्कि मरीजों को फिर से स्वतंत्र जीवन जीने में सक्षम भी बना रहा है।

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