
New Delhi : भारत की सनातन परंपरा, लोक जीवन व मर्यादा का अभिन्न हिस्सा है लोकतंत्र। यह बात राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कही। उन्होंने कहा कि भारत लोकतंत्र की जननी है और लोकतंत्र हमारी लौकिक और सनातन परंपरा का स्वाभाविक हिस्सा है।
लोकजीवन और लोकतांत्रिक व्यवहार है भारत की पहचान
हरिवंश ने कहा कि लोकजीवन और लोकतांत्रिक व्यवहार और आचरण भारत की पहचान है। लेकिन विडंबना रही कि हमारी ज्ञान परंपरा और शिक्षा प्रणाली को यूरोपीय नजरिए से देखा और आंका गया।
दिल्ली विधान सभा में हुआ आयोजन
हरिवंश दिल्ली विधान सभा द्वारा आयोजित विट्ठलभाई पटेल के सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के अध्यक्ष पद का कार्यभार ग्रहण करने के शताब्दी समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस आयोजन का विषय “भारत: लोकतन्त्र की जननी” था।
सरदार पटेल को याद किया
इस अवसर पर हरिवंश ने सरदार पटेल को याद करते हुए कहा कि भारत पटेल बंधुओं का सदैव ऋणी रहेगा। सरदार पटेल आजाद भारत के बिस्मार्क थे। उन्होंने सदन के व्यवधान पर भी बात की और कहा कि व्यवधानों से सदन का समय तो नष्ट होता ही है, सदस्यों के अधिकारों का हनन भी होता है।
भारत की विविधता को समाहित करने के लिए लोकतांत्रिक और समावेशी होना जरूरी
हरिवंश ने कहा कि भारत की विविधता को समाहित करने के लिए लोकतांत्रिक और समावेशी होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि केन्द्रीकरण भारत के चरित्र के विरुद्ध है और हम मूलतः लोकतांत्रिक संस्कृति के हैं।
प्राचीन भारत का लोकतंत्र आधुनिक अर्थों में भले चुनावी न रहा हो
हरिवंश ने कहा कि प्राचीन भारत का लोकतंत्र आधुनिक अर्थों में भले चुनावी न रहा हो, लेकिन वह समवेशी था, जिसमें परस्पर संवाद सहज था। उन्होंने कहा कि हमें अपने इतिहास बोध को मजबूत करना होगा और लोकतंत्र के इतिहास में देश के हर वर्ग का गौरवपूर्ण योगदान को सम्मान देना होगा।