
नई दिल्ली, 19 जुलाई: नोवल कोरोना वायरस 2019 से निपटने के लिए स्वास्थ्य संस्थानों और जनता ने जैसी तत्परता कोरोना काल में दिखाई थी। अगर वैसी ही तत्परता सर्वाइकल कैंसर के मामले में भी दिखाई जाए तो हम प्रतिवर्ष 80 हजार महिलाओं की मौत होने से रोक सकते हैं।
यह बातें एम्स दिल्ली के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग की ओर से सर्वाइकल कैंसर पर आयोजित कार्यशाला में वरिष्ठ डॉक्टर अभिषेक शंकर ने शनिवार को कहीं।
उन्होंने कहा, अगर भारत सर्वाइकल कैंसर को हराना चाहता है, तो उसे इसके बारे में खुलकर और जोरदार तरीके से बात करनी होगी। चूंकि अब समय आ गया है कि हम इस स्वास्थ्य खतरे को उसी तत्परता और राष्ट्रीय ध्यान के साथ देखें, जिस तरह हमने कोविड-19 के लिए किया था।
डॉ. शंकर ने कहा, लोग पहले कोविड के टीकों को लेकर भी झिझकते थे—लेकिन जागरूकता ने सब कुछ बदल दिया। हमें सर्वाइकल कैंसर के लिए भी उसी तरह के अभियान की जरूरत है। उन्होंने कहा, देश में यौन स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी बात पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है जिसमें एचपीवी भी शामिल है। यह सर्वाइकल कैंसर के लगभग सभी मामलों के लिए जिम्मेदार वायरस है। डॉ. शंकर बताते हैं, जैसे ही आप कहते हैं कि यह एक यौन संचारित रोग है, लोग चुप हो जाते हैं। लेकिन चुप्पी खतरनाक है। हमें मिथकों को तोड़ना होगा और बातचीत को सामान्य बनाना होगा। डर और टीके के प्रति हिचकिचाहट को कम करने का यही एकमात्र तरीका है।
सर्वाइकल कैंसर से बचाव के मामले में महिला की नियमित जांच और एचपीवी वैक्सीन उपयोगी है। लेकिन देश की महिलाएं अभी भी बड़ी संख्या में सर्वाइकल कैंसर को देरी से डिटेक्ट कर पा रही हैं।
एम्स के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. सुमन भास्कर ने कहा, 70% से 80% मामलों का पता एडवांस स्टेज में चलता है। जो एक बड़ी समस्या है। उन्होंने कहा, जब कैंसर का पता जल्दी चल जाता है, तो इलाज आसान हो जाता है। जैसे सर्जरी या रेडिएशन से लेकिन अगर इसका पता देर से चलता है, तो यह जटिल हो जाता है। मरीजों को कई दौर के इलाज की जरूरत होती है, यह महंगा होता है और इसके दुष्प्रभाव ज्यादा गंभीर होते हैं।
कैंसर रोग का जल्दी पता लगना सिर्फ मददगार ही नहीं है, यह जीवन रक्षक भी है। फिर भी सामाजिक वर्जनाओं और जागरूकता की कमी के कारण, महिलाएं अक्सर जांच कराने में देरी करती हैं या कभी जांच ही नहीं करातीं। जिसके चलते प्रतिवर्ष हजारों महिलाओं की मौत हो जाती हैं जिन्हें रोका जा सकता है।
एचपीवी – डीएनए टेस्ट कराएं 5 साल तक राहत पाएं
एम्स के विशेषज्ञों ने बताया कि प्रत्येक महिला में एचपीवी (ह्यूमन पेपिलोमावायरस) होता है जो कभी भी सक्रिय होकर रोग उत्पन्न कर सकता है। इससे बचाव के लिए महिलाओं को 30 साल की उम्र के बाद महिलाओं को ह्यूमन पेपिलोमावायरस – डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (एचपीवी – डीएनए) टेस्ट कराना चाहिए। ये टेस्ट ना सिर्फ सर्वाइकल कैंसर की सटीक पहचान कर सकता है, बल्कि एचपीवी के संक्रमण को पकड़ सकता है। इसके बाद करीब पांच साल तक टेस्ट कराने की जरूरत नहीं होती।
‘कोटा फैक्ट्री’ सीजन 3: जितेंद्र कुमार की दमदार ड्रामा नेटफ्लिक्स पर आएगी, रिलीज डेट सामने आई