Naugam Blast: नौगाम पुलिस स्टेशन धमाका: नमूना संग्रह के दौरान हुआ विस्फोट, नौ लोगों की मौत से दहला कश्मीर

Naugam Blast: नौगाम पुलिस स्टेशन धमाका: नमूना संग्रह के दौरान हुआ विस्फोट, नौ लोगों की मौत से दहला कश्मीर
श्रीनगर के नौगाम पुलिस स्टेशन में शुक्रवार देर रात हुआ आकस्मिक विस्फोट घाटी के लिए सबसे दुखद और दर्दनाक घटनाओं में से एक बन गया। आतंकियों के एक मॉड्यूल पर छापेमारी के दौरान बरामद किए गए विस्फोटक पदार्थ को सुरक्षित रखने के लिए पुलिस स्टेशन में रखा गया था। इन्हीं विस्फोटकों की वैज्ञानिक जांच के दौरान अचानक हुए धमाके में नौ लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। पुलिसकर्मी, फॉरेंसिक एक्सपर्ट, नायब तहसीलदार, फोटोग्राफर और यहां तक कि एक स्थानीय दर्जी—सब इस हादसे के शिकार बने। श्रीनगर के पुलिस नियंत्रण कक्ष में इन सभी को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई, जहां पीड़ित परिवारों के चीख़ते-बिलखते दृश्य हर किसी की आंखें नम कर गए।
फॉरेंसिक टीम और अधिकारी सबसे आगे, पर मौत ने नहीं बख्शा
फोरेंसिक साइंटिफिक लैब (FSL) के हेड कांस्टेबल मोहम्मद अमीन मीर—इस हादसे में जान गंवाने वालों में सबसे पहले पहचाने गए। उन्होंने अपने छोटे भाई से सिर्फ 35 मिनट पहले अंतिम बार बात की थी—“मैं बस थोड़ी देर में घर आ रहा हूँ।” लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर था। नमूने इकट्ठा करते समय हुए जबरदस्त धमाके ने 45 वर्षीय मीर की मौके पर ही जान ले ली। उनके परिवार में पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं।
विशेष जांच एजेंसी SIA के इंस्पेक्टर पीरज़ादा असरार-उल-हक भी इस टीम का हिस्सा थे। बेहद तेज-तर्रार और काबिल अफसर के रूप में पहचाने जाने वाले हक ने 2010 में सेवा ज्वाइन की थी और कश्मीर के युवा अफसरों में उनकी गिनती सबसे होनहार अधिकारियों में होती थी। दो बार J&K प्रशासनिक सेवा के इंटरव्यू तक पहुंचे थे, पर मामूली अंतर से चयन नहीं हो पाया। 38 वर्षीय हक के परिवार में माता-पिता, पत्नी और तीन छोटे बच्चे हैं।
नायब तहसीलदार मुज़फ्फ़र अहमद ख़ान भी वहीं मौजूद थे ताकि विस्फोटक सामग्री के हर नमूने की निगरानी कानूनन की जा सके। बडगाम के सोइबुग निवासी खान के दो छोटे बच्चे—एक छह साल का बेटा और नौ महीने की बेटी—अब पिता की छाया के बिना हैं।
दस्तावेज़ीकरण कर रहे फोटोग्राफर, दर्जी और एक आम नागरिक भी नहीं बचे
क्राइम ब्रांच के दो फोटोग्राफर—जाविद मंसूर राठेर और अरशद अहमद शाह—विस्फोटक सामग्री के संग्रहण और प्रक्रिया की वीडियो-रिकॉर्डिंग कर रहे थे। दोनों ही अपने-अपने परिवारों के अकेले कमाने वाले थे। अरशद शाह के सात साल के बेटे और छोटी बेटी को अब अपने पिता की तस्वीर ही सहारा देगी।
नौगाम में दशकों से दर्जी की दुकान चलाने वाले शौकत अहमद पर्रे को भी पुलिस स्टेशन बुलाया गया था—विस्फोटक सामग्री रखने के लिए मजबूत थैले सिलवाने के लिए। पर्रे अपने सिलाई के औज़ार साथ लेकर पहुंचे थे, लेकिन वापस नहीं लौट सके। 52 वर्षीय पर्रे के पीछे पत्नी, दो बेटे और एक बेटी हैं।
राजस्व विभाग में चौकीदार के रूप में काम करने वाले सुहैल अहमद राथर एक स्वतंत्र गवाह के तौर पर बुलाए गए थे। नटीपोरा निवासी सुहैल अपने इलाके में CSC सेंटर भी चलाते थे। उनके माता-पिता का सहारा भी यही थे।
FSL में कार्यरत एजाज़ अहमद मीर और लैब असिस्टेंट शौकत अहमद भी धमाके में मारे गए। दोनों वैज्ञानिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे और अपनी ड्यूटी निभाते हुए मौत के मुंह में समा गए।
नौगाम धमाके ने यह साबित कर दिया कि आतंकवाद भले कम हो गया हो, लेकिन आतंकियों की छोड़ी हुई एक गलती भी कितनी बड़ी त्रासदी बन सकती है। कश्मीर ने न सिर्फ नौ बहादुर और मेहनती लोगों को खोया, बल्कि नौ परिवारों के सपने, उम्मीदें और मुस्कानें भी हमेशा के लिए बुझ गईं।





