
Gujarat News (अभिषेक बारड): शक्ति, भक्ति और श्रद्धा का सर्वोच्च शिखर है यत्राधाम अंबाजी। माता का हृदय यहाँ विराजमान होने के कारण श्रद्धालु इस शक्तिपीठ में विशेष आस्था रखते हैं। देवी भागवत पुराण में भी शक्तिपीठ अंबाजी का महिमा वर्णित मिलता है। आगामी १ से ७ सितम्बर के दौरान भादरवी पूर्णिमा पर यहाँ विशाल मेला आयोजित होगा। तो आइए जानते हैं शक्तिपीठ अंबाजी का महत्व…
यात्राधाम अंबाजी में आयोजित भादरवी पूर्णिमा के महामेळे में हृदय से हृदय जुड़ जाए ऐसा मानव सैलाब उमड़ पड़ेगा। भारत भर से माँ भक्तों का जनसैलाब मेले में उमड़ता है। श्रद्धा, विश्वास और भक्ति के त्रिवेणी संगम समान इस शक्तिपीठ में माता का हृदय विराजमान होने की मान्यता के कारण ही श्रद्धालुओं में अंबाजी शक्तिपीठ का विशेष महत्व है।
माँ अम्बे के प्रकट होने की मूल कथा पुराणों पर आधारित है। कथा के अनुसार प्रजापिता दक्ष ने बृहस्पति सव नामक महायज्ञ का आयोजन किया था। जिसमें दक्ष ने सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन अपने ही दामाद भगवान शंकर को नहीं बुलाया। पिता के यहाँ यज्ञ है यह समाचार सुनकर भगवान शंकर की अनुमति न होते हुए भी देवी सती अपने पिता के घर पहुँच गईं। वहाँ आयोजित यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित न देख और पिता दक्ष के मुख से पति की निंदा सुनकर देवी सती ने यज्ञकुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
भगवान शिव ने देवी सती के निःश्वेतन शरीर को देखकर तांडव किया और सती का शरीर कंधे पर उठाकर तीनों लोकों में घूमने लगे। तब संपूर्ण सृष्टि के विनाश का भय होने पर भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाकर देवी सती के शरीर के टुकड़े कर दिए। जो पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। ऐसे ५१ शक्तिपीठों में अंबाजी शक्तिपीठ का अनोखा और अलग महत्व होने के कारण माँ भक्तों में अंबाजी धाम के प्रति विशेष श्रद्धा और आस्था है।
देवी भागवत की एक अन्य कथा के अनुसार पौराणिक काल में महिषासुर नामक राक्षस संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए संकट बना हुआ था। तब त्रिदेव ब्रह्मा–विष्णु–महेश के नेतृत्व में सभी देवता ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति आद्यशक्ति महादेवी के आश्रय में गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। तब आद्य देवी शक्ति सूर्यकिरणों के तेजस्वी वृत्त से घिरे शस्त्रों सहित पृथ्वी पर अवतरित हुईं और अपनी पवित्र तलवार से महिषासुर राक्षस का वध किया। तभी से वे विश्व में महिषासुर मर्दिनी के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
रामायण की कथा के अनुसार भगवान श्रीराम और लक्ष्मण सीताजी की खोज में श्रंगी ऋषि के आश्रम में पहुँचे। वहाँ उन्हें गब्बर पर्वत पर देवी अंबाजी की पूजा करने का निर्देश दिया गया। भगवान श्रीराम ने वैसा ही किया और जगन्माता शक्ति देवी अंबाजी ने उन्हें “अजय बाण” नामक चमत्कारी बाण प्रदान किया। जिसकी मदद से भगवान श्रीराम ने युद्ध में रावण पर विजय प्राप्त की और उसका वध किया।
श्रीकृष्ण की चौल क्रिया
ऐसी भी एक दंतकथा है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का चौल संस्कार (बाल उतारने की क्रिया) भी इसी गब्बर टेकरी पर किया गया था। उनके पालक माता–पिता नंद और यशोदा ने भी देवी अंबाजी और भगवान शिव की पूजा की थी। मेवाड़ के प्रसिद्ध राजपूत राजा महाराणा प्रताप आरासुरी अम्बा भवानी के परम भक्त थे। एक बार माता अंबाजी ने उन्हें संकट से बचाया था। तभी उन्होंने अपनी प्रसिद्ध तलवार माता आरासुरी अंबाजी के पवित्र चरणों में भेंटस्वरूप अर्पित की थी।
हर वर्ष अंबाजी में भादरवी पूर्णिमा का मेला आयोजित होता है। यात्राधाम से पौराणिक और ऐतिहासिक कई मान्यताएँ और दंतकथाएँ जुड़ी हुई हैं। श्रद्धालुओं को इन पर पूर्ण विश्वास होने से हर वर्ष भादरवी पूर्णिमा के मेले में लाखों माँ भक्त पदयात्रा कर अंबाजी के दर्शनार्थ पहुँचते हैं और स्वयं को धन्य मानते हैं।
माँ अम्बा भाविक श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करती हैं – इस श्रद्धालुओं की मान्यता के कारण हर वर्ष मेले में यात्रियों और दर्शनार्थियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। राज्य सरकार, श्री पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड, श्री आरासुरी अंबाजी माता देवस्थान ट्रस्ट, जिला प्रशासन तथा सेवाभावी संस्थाओं के संयुक्त प्रयास से लाखों माँ भक्तों के लिए मेले में रहने, भोजन, विश्राम और दर्शन की विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं।