
नई दिल्ली, 3 सितंबर : फेफड़ों की गंभीर बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने पर अस्पताल में दवा के तौर पर मेडिकल ऑक्सीजन दी जाती है। लेकिन मरीज को कब, कैसे और कितनी मात्रा में ऑक्सीजन दी जाए और इसका प्रबंधन कैसे किया जाए? इस विषय को लेकर एम्स दिल्ली ने देश- भर के 350 स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को मास्टर प्रशिक्षक के तौर पर प्रशिक्षित किया है।
एम्स के निदेशक प्रो. एम. श्रीनिवास ने बताया कि मेडिकल ऑक्सीजन को दवा के रूप में उपयोग करने और स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में ऑक्सीजन प्रबंधन को लागू करने के लिए एम्स दिल्ली ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ के साथ करार किया है। इसके तहत देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यरत स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को मेडिकल ऑक्सीजन प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाना है। जिससे आपात स्थिति में मेडिकल सेवाओं को सुचारू बनाए रखने में मदद मिल सकेगी। पहले चरण में 350 लोगों को मास्टर प्रशिक्षक के तौर पर प्रशिक्षित किया गया है। उनके साथ आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ के उप महानिदेशक डॉ. प्रदीप खासनोबिस मौजूद रहे।
चिकित्सा अधीक्षक प्रो. निरुपम मदान ने प्रत्येक अस्पताल में ऑक्सीजन के प्राथमिक और द्वितीयक स्रोत की आवश्यकता और उस स्रोत को अच्छी तरह से बनाए रखने तथा हर स्थिति के लिए तैयार रहने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में तरल ऑक्सीजन संयंत्रों और पीएसए (प्रेशर स्विंग एडसोर्प्शन टेक्नोलॉजी) के महत्व और अस्पताल की स्थिति और उपलब्ध लॉजिस्टिक्स के आधार पर उनके इष्टतम उपयोग की रणनीतियों के बारे में भी बताया।
करार में शामिल परियोजना के प्रमुख, डॉ. विजयदीप सिद्धार्थ ने बताया कि प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए एम्स भुवनेश्वर, एम्स मंगलगिरी, पीजीआईएमईआर चंडीगढ़, एएफएमसी पुणे और एम्स नई दिल्ली में पांच विशेष कार्यशालाओं का आयोजन किया गया जिसमें कोविड-19 से प्राप्त अनुभवों के तहत एनेस्थीसिया विशेषज्ञों, बाल रोग चिकित्सकों, नर्सों और तकनीशियनों आदि को मेडिकल ऑक्सीजन प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने कहा कि इन कार्यशालाओं के माध्यम से विकसित मास्टर प्रशिक्षक अब अपने सहयोगियों के क्षमता निर्माण में मदद करेंगे।
कब जरूरत होती है ऑक्सीजन की ?
डॉक्टर रक्त परीक्षण या फिंगरटिप सेंसर (पल्स ऑक्सीमीटर) का इस्तेमाल करके व्यक्ति के रक्त प्रवाह में ऑक्सीजन के स्तर को जांचते हैं। ऑक्सीजन का स्तर तय हो जाने के बाद, ऑक्सीमीटर का उपयोग समय के साथ ऑक्सीजन के प्रवाह की सेटिंग्स (व्यक्ति को प्रति मिनट दी जाने वाली ऑक्सीजन की मात्रा तय करना) की जाती है।
कैसे की जाती है ऑक्सीजन की व्यवस्था ?
ऑक्सीजन का व्यवस्थापन, आमतौर पर 2-प्रॉन्ग्ड नेजल ट्यूब (कैन्युला) के जरिए किया जाता है। डिमांड-टाइप सिस्टम, सिर्फ मशीन के उपयोगकर्ता द्वारा ट्रिगर किए जाने पर ही ऑक्सीजन डिलीवर करते हैं (जैसे जब कोई व्यक्ति सांस अंदर लेता है या डिवाइस को दबाता है)। वे लगातार ऑक्सीजन डिलीवर नहीं करते हैं। कुछ में छोटे रिजर्वायर होते हैं। जिन लोगों को बहुत ज्यादा मात्रा में सप्लीमेंटल ऑक्सीजन की जरूरत होती है। उनके लिए, कई उपकरण इस्तेमाल किए जाते हैं, जिनमें रिजर्वायर कैन्युला शामिल हैं। ये कैन्युला, ऑक्सीजन को एक छोटे से चैम्बर में स्टोर करता है और जब व्यक्ति सांस लेता है, तब वह ऑक्सीजन भेजता है
‘कोटा फैक्ट्री’ सीजन 3: जितेंद्र कुमार की दमदार ड्रामा नेटफ्लिक्स पर आएगी, रिलीज डेट सामने आई