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उत्तर प्रदेश, नोएडा: सास और मां ने किडनी देकर बचाई 2 जान

उत्तर प्रदेश, नोएडा: सास और मां ने किडनी देकर बचाई 2 जान

अमर सैनी
उत्तर प्रदेश, नोएडा।मदर्स डे के अवसर पर फोर्टिस अस्पताल नोएडा के डॉक्टरों ने दो हाइरिस्क किडनी ट्रांसप्लांट करते हुए ऐसे दो व्यक्तियों को नया जीवन दान दिया। ये किडनी की ला इलाज बीमारी से परेशान थे।

डॉ अनुजा पोरवाल, डायरेक्टर, नेफ्रोलॉजी ने फोर्टिस अस्पताल, नोएडा की अगुआई में डॉ पीयूष वार्ष्णेय, डायरेक्टर, यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, फोर्टिस अस्पताल, नोएडा ने इस सर्जरी के माध्यम से मां की ममता और स्नेह की मजबूत डोर का प्रदर्शन किया।

केस-1
सास ने दामाद को दी किडनी
प्रदेश में हापुड़ के 37 साल के व्यक्ति को क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) थी। उन्होंने अपनी एलोपैथिक दवाइयां छोड़ कर आयुर्वेदिक इलाज का सहारा लिया। जिससे किडनी और भी खराब हो गईं।

जब मरीज को फोर्टिस अस्पताल नोएडा में भर्ती कराया गया तो उनकी हालत हाइपरटेंसिव थी और बेहद कमजोर थी। रक्त नलियों क्षतिग्रस्त होने की वजह से उनकी हालत डायलसिस की भी नहीं थी। उनके बूढे माता पिता उपयुक्त डोनर नहीं पाए गए और पत्नी व उनके भाई का रक्त समूह मरीज से मेल नहीं खाता था।

उम्मीद टूटती जा रही थी। ऐसे में मरीज की 53 साल की सास ने हौसला दिखाया। उन्होंने यह कहते हुए किडनी दान करने की इच्छा जतायी कि मैं भी तो मां ही हूं। इस तरह मरीज का किडनी ट्रांसप्लांट किया गया जिसके बिना मरीज का जीवन कुछ ही साल बचा था। अब यह मरीज स्वस्थ जीवन जी रहा है।

केस-2
66 साल की मां ने दी किडनी
मेरठ के एक 40 साल के व्यक्ति की किडनी पूरी तरह फेल हो चुकी थी। इस मरीज ने भी ऑप्शनल इलाज से अपना हाल खराब किया था और समय पर इलाज न किया जाता तो जीवन के कुछ ही साल बचे थे। फोर्टिस अस्पताल नोएडा में लाए जाने के बाद उन्हें बिगड़ती स्थिति के मद्देनजर तत्काल किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई।

मरीज की पत्नी और उनकी 66 साल की मां ने किडनी दान करने की पेशकश की। जेनेटिक जांच में उनकी मां को एकदम उपयुक्त किडनी डोनर पाया गया। उन्होंने अपने बेटे को किडनी दान की और उसे दूसरा जीवन प्रदान किया। ऑपरेशन पूरी तरह से कामयाब रहा और मरीज को स्थिर हालात में डिस्चार्ज किया गया।

दोनों मामलों में डायलिसिस तक का विकल्प नहीं
इन दोनों मामलों की जानकारी देते हुए डॉ अनुजा पोरवाल, नेफ्रोलॉजी ने बताया कि “इन दोनों ही मामलों में मरीज की हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि डायलसिस का विकल्प नहीं बचा था। ऐसे में उनका जीवन केवल तत्काल ट्रांसप्लांट पर ही निर्भर था। इन मामलों में क्रमशः सास और मां का संकल्प काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ, जो तमाम जोखिमों के बावजूद अपने गुर्दे देने के लिए आगे आई।

सर्जरी में ये थी चुनौती
डॉ पीयूष वार्ष्णेय, डायरेक्टर यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट ने बताया कि “सर्जिकल दृष्टि से देखें तो ये दोनों मरीज काफी हाई-रिस्क श्रेणी में आते हैं जो एडवांस किडनी फैलियर से जूझ रहे थे। इनकी कंडीशन में सटीक प्लानिंग और बेहद सावधानी पूर्वक सर्जरी की आवश्यकता थी। सबसे महत्वपूर्ण था इन डोनर्स की भावनात्मक ताकत, जो अपने बेटों की जान बचाने से जरा भी नहीं हिचकीं।

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