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Red Fort Attack: भारत की सुरक्षा और सम्मान पर गहरा आघात — कमांडर प्रफुल बक्षी से विशेष बातचीत

Red Fort Attack: भारत की सुरक्षा और सम्मान पर गहरा आघात — कमांडर प्रफुल बक्षी से विशेष बातचीत

डॉ. अनिल सिंह, संपादक – STAR Views एवं एडिटोरियल एडवाइज़र, Top Story

जब स्वतंत्रता और संप्रभुता के प्रतीक लाल किले के प्रांगण में धमाकों और गोलीबारी की आवाज़ें गूंजती हैं, तो यह सिर्फ एक घटना नहीं रहती; यह पूरे राष्ट्र के आत्मसम्मान पर चोट है। Top Story ने इस सुरक्षा संकट पर नौसेना के प्रतिष्ठित अधिकारी और रक्षा-रणनीतिकार कमांडर प्रफुल बक्षी से विशेष बातचीत की, जिसमें उन्होंने हमारी खुफिया व सुरक्षा प्रणाली की खामियों, समन्वय की कमी और ऐसे मनोवैज्ञानिक हमलों के गहरे निहितार्थों को बेबाकी से रखा।
कमांडर बक्षी ने स्पष्ट कहा कि लाल किले पर हमला मात्र तोड़फोड़ नहीं था बल्कि एक प्रतीकात्मक, मनोवैज्ञानिक और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पैदा करने वाला आतंकी हमला था। इसका उद्देश्य भारत की ‘रेड लाइन’ को चुनौती देना और वैश्विक मंच पर देश की छवि को ठेस पहुंचाना था। भौतिक नुकसान सीमित हो सकता है, पर नैतिक और मनोवैज्ञानिक क्षति अत्यधिक गंभीर है।
कमांडर बक्षी ने बताया कि समस्या सूचना की कमी नहीं, सूचना के प्रयोग और एकीकृत कार्रवाई की कमी है। हमारे पास आईबी, रॉ, एनआईए, एनएसजी और मिलिट्री इंटेल जैसे संसाधन और डेटा मौजूद हैं, पर वे टुकड़ों में बिखरे हुए हैं—डेटा है, दिशा नहीं। यह एक “कोऑर्डिनेशन क्राइसिस” है: सूचनाएँ मिलती हैं पर समय पर निर्णायक कार्रवाई न होने से चेतावनियाँ फाइलों में दबी रह जाती हैं। इसीलिए रोकथाम कामयाब नहीं होती और हम हमेशा प्रतिक्रिया देने वाले बने रहते हैं।
कमांडर बक्षी के अनुसार इसे सिर्फ़ आतंक-रोधी नीति की असफलता नहीं कहा जा सकता—यह नीति और निर्णय-प्रणाली दोनों की कमजोरी है। कागज़ पर हमारी नीतियाँ मजबूत दिखती हैं, पर अमल में वे प्रभावी नहीं। हर बार हमले के बाद वही प्रक्रियाएँ दोहराई जाती हैं—जवाबदेही तय करने की चर्चाएँ, इस्तीफों की संभावनाएँ—पर वास्तविक सुधार नहीं होता। वे जोर देते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा को दफ्तर के बजाय युद्ध कमांड की तरह चलाने की आवश्यकता है, यानी कमांड और कंट्रोल का केंद्रीयकरण और त्वरित, निर्णायक कार्रवाई।
कमांडर बक्षी इस बात पर भी बल देते हैं कि आतंकवाद को युद्ध की भाषा में जवाब देना होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि दुश्मन को यकीन हो कि हर हमले का जवाब तुरंत और सख्ती से दिया जाएगा, तो वह दो बार सोचेगा। इसलिए कूटनीति के साथ-साथ सटीक और दृढ़ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई भी जरूरी है। सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद नीति-रैखिकता दिखाई है, पर उसे निरंतरता और तेज़ी चाहिए।
अपने सुझावों में कमांडर बक्षी ने तीन प्रमुख बदलाव सुझाए—पहला, कमांड और कंट्रोल को एकीकृत करना: सभी खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों को राष्ट्रीय काउंटर टेरर ग्रिड के अंतर्गत लाया जाए, जिसकी कमान एक ही ऑपरेशनल अथॉरिटी के पास हो; दूसरा, जवाबदेही सुनिश्चित करना: कार्रवाई न करने पर स्पष्ट परिणाम होंगे; तीसरा, दृढ़ता से उत्तर देना: आतंकवाद को उसी भाषा में जवाब दिया जाए जिसे वह समझता है—सटीक, निर्णायक और समयबद्ध कार्रवाई। यदि सशस्त्र बलों को पूर्ण ऑपरेशनल अधिकार मिल जाएँ तो वह प्रभाव हफ्तों में दिख सकते हैं, उनका मानना है।
कमांडर बक्षी ने यह भी चेतावनी दी कि भीतर से सक्रिय घटक—देशी चरमपंथी और स्लीपर सेल—देश की क्षति पहुँचा सकते हैं, इसलिए स्थानीय-स्तर पर निगरानी, समुदाय-आधारित रिपोर्टिंग और पुलिस-इंटेल समन्वय को मजबूत करना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर अब आधे-अधूरे उपायों का समय नहीं है; लाल किले जैसी संवेदनशील संपत्तियों की सुरक्षा के लिए रणनीतिक दृढ़ता और त्वरित सामरिक उत्तरदायित्व जरूरी है।
अंत में कमांडर बक्षी ने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री के लिए दोहराया संदेश दिया—एकीकृत कमांड लागू करें, जवाबदेही ठोस बनाएं और आतंकवाद का जवाब निर्णायक तरीके से दें। उनका स्पष्ट मानना है कि अगर ये कदम उठाए जायें तो भारत न केवल अपनी सुरक्षा बहाल कर सकता है बल्कि विश्व स्तर पर अपनी अस्मिता और सम्मान की रक्षा भी सुनिश्चित कर सकता है। जय हिंद।

ममूटी ने कहा कि उन्हें ‘मेगास्टार’ की उपाधि पसंद नहीं है, उन्हें लगता है कि उनके जाने के बाद लोग उन्हें याद नहीं रखेंगे

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